tag:blogger.com,1999:blog-7876849647290015560.post5680334327617891810..comments2023-10-08T20:45:56.691+05:30Comments on honestyprojectrealdemocracy: सभी ब्लोगरों से करबद्ध प्रार्थना है कि इस ब्लॉग को जरूर पढ़ें और अपना बहुमूल्य सुझाव देने का कष्ट करें----- देश के संसद और राज्य के विधानसभाओं के दोनों सदनों में आम जनता के द्वारा प्रश्न काल के लिए साल में दो महीने आरक्षित होना चाहिए --------------honesty project democracyhttp://www.blogger.com/profile/02935419766380607042noreply@blogger.comBlogger36125tag:blogger.com,1999:blog-7876849647290015560.post-49541338972779419672010-05-14T17:10:37.649+05:302010-05-14T17:10:37.649+05:30ye vichar to bahut hi accha hai...aisa hone par ja...ye vichar to bahut hi accha hai...aisa hone par janta ki baaten turant sarkaar tak pahunch pati...aur unhe karyvahi bhi jald karni padti kyunki tab unke paas koi bahana nahi hota....dhire-dhire hi sahi lekin bhrashtachaar jarur mit jata....is baat ko manyata to milni hi chahiye..lekin is baat ki swatantrata milne ke baad sabse jyada jaruri to yahi hoga ki prashn puchhne ke liye jimmedaar logon ko bhejna hoga jo janta ki baaton ko jyon ka tyon sansad tak le jayen...bina milavat ke....aur unpar jald se jald faisle kiye ja saken...Nehahttps://www.blogger.com/profile/01342785247243151659noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7876849647290015560.post-72122871619045477612010-05-03T20:58:14.111+05:302010-05-03T20:58:14.111+05:30उतम विचारउतम विचारAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/02964602014678479457noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7876849647290015560.post-88645529382016913332010-05-03T07:18:45.776+05:302010-05-03T07:18:45.776+05:30देश अभी स्वतंत्र हुआ ही नहीं है - १९४७ में केवल सत...देश अभी स्वतंत्र हुआ ही नहीं है - १९४७ में केवल सत्तपरिवर्तन हुआ ब्रिटिश राजघराने से देशी राजघराणों के लिए. इसलिए शोषण यथावत जारी है. स्वतंत्रता के लिए दूसरे संग्राम की आवश्यकता है जिसके बाद देश में बौद्धिक लोगों की शासन व्यवस्था स्थापित हो सके. देश के लोग अभी भी इस योगया नहीं हें की उन्हें समान मताधिकार दिया जा सके. इसलिए प्रत्येक मतदाता के मत का मान उसकी सुयोग्यता के आधार पर निर्धारित होना चाहिए. इसी को हम बौद्धिक जनतंत्र कहते हैं जिसकी रूपरेखरें और प्रावधान इन संलेखों पर प्रकाशित किए जा रहे हैं -<br />http://intellocracy.blogspot.com<br />http://bhaarat-bhavishya-chintan.blogspot.comराम बंसल/Ram Bansalhttps://www.blogger.com/profile/10182040999161020512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7876849647290015560.post-86553881911807630082010-05-02T17:03:42.431+05:302010-05-02T17:03:42.431+05:30हम इस पवित्र पावन काम में पूरी तरह आपके साथ हैं हम...हम इस पवित्र पावन काम में पूरी तरह आपके साथ हैं हमारे योग्य जो भी हो निसंकोच हमें बताएंAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/11007528828982494611noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7876849647290015560.post-60119682811768037482010-05-02T12:26:48.388+05:302010-05-02T12:26:48.388+05:30बेईमान-ईमानदार, भ्रष्ट-अभ्रष्ट, मेहनती-हरामखोर...स...बेईमान-ईमानदार, भ्रष्ट-अभ्रष्ट, मेहनती-हरामखोर...सब अपना काम सदियों से करते आ रहे हैं। पर यह आशा सदा बनी रहती है कि एक दिन सब ठीक और सुन्दर हो जाएगा। आप लगे रहें, मैं भी पिछले लगभग ४ दशकों से लगा हुआ हूं और संतोष की बात यह है कि हमारा साथ देने वाले बहुत हैं।<br />-कार्टूनिस्ट चन्दर/ www.cartoonpanna.tkAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/11014368776047099966noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7876849647290015560.post-12861631552703968282010-05-01T16:18:33.491+05:302010-05-01T16:18:33.491+05:30जनभ्रम कब दूर होगा?
जन,जनसेवक और जनतंत्र... कहते ...जनभ्रम कब दूर होगा?<br /><br />जन,जनसेवक और जनतंत्र... कहते हैं कि एक दूसरे के पूरक है. जन जल रहा है, जनसेवक मेवा खा रहे हैं और जनतंत्र में से जन गायब हो चुका है. तंत्र जन को लूट रहा है और जन भ्रम में जीए जा रहा है. उसको लग रहा है कि विकास हो रहा है, पेड़-पौधों को काटकर, झुग्गियों को जलाकर/उजारकर,जंगलपुत्रों पर आग बरसाकर, संसद में प्रश्न के बदले धन लेकर, आईपीएल में सट्टा लगाकर, मेडिकल कॉसिल में घपला कर के, शहीदों के विधवाओं को विलखता छोड़कर, संयुक्त और अब व्यक्तिगत परिवार को तोड़कर.<br />ऐसे में जिन सांसदों से हम सवाल पुछेंगे क्या उनको मालुम नहीं होता कि उनके क्षेत्र की समस्या क्या है? मालुम होते हुए अगर वे वातानुकूलित हवा को छोड़कर चिलचिलाती धूप में पत्थर तोड़ती औरत की मुसिबतों को देखने के लिये नहीं आ सकते, तो इन सांसदों और विधायको से प्रश्न पूछ कर समय जाया करने से कोई फायदा हमे नजर नहीं आता. इन महानुभावों को संसद/विधानसभाओं में घेरने के बजाय उनके क्षेत्र में ही उनके कर्तव्यों के निर्वहन के लिये उन पर हर संभव दबाव बनाया जाए तो ज्यादा अच्छा होगा.<br /><br />आशुतोष कुमार सिंह<br />दिल्ली <br />zashusingh@gmail.comआशुतोष कुमार सिंहhttps://www.blogger.com/profile/00677976949564721957noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7876849647290015560.post-35863467043179327982010-05-01T12:08:11.740+05:302010-05-01T12:08:11.740+05:30सर जिस देश मे जनता के सवाल् पुछने के भी रुपया यहा ...सर जिस देश मे जनता के सवाल् पुछने के भी रुपया यहा के संसद सदस्य लेते है उन्हे कमाइ का दो आर्क्ष्सित् महिने मिल जयेङ्गे।anoop joshihttps://www.blogger.com/profile/14146375128512331870noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7876849647290015560.post-44693408493149560882010-04-30T23:38:49.025+05:302010-04-30T23:38:49.025+05:30निताँत अव्यवहारिक परिकल्पना,
अपने अपने क्षेत्र के ...<i><br />निताँत अव्यवहारिक परिकल्पना,<br />अपने अपने क्षेत्र के साँसदों से ज़वाबदेही तक ठीक है,<br />जब हमने प्रतिनिधि चुना है, तो अलग से अपनी भागीदारी की माँग.. कानून व्यवस्था के लिये चुनौती होगी ! <br /></i>डा० अमर कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09556018337158653778noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7876849647290015560.post-37051573841994614602010-04-30T17:00:11.506+05:302010-04-30T17:00:11.506+05:30मैं ही क्यों, देश का कोई भी सभ्य नागरिक आज तक यह न...मैं ही क्यों, देश का कोई भी सभ्य नागरिक आज तक यह नहीं समझ पाया कि आम आदमी का प्रतिनिधि वीआईपी क्यों होता है? इसके अलावा संसद में इतना हो-हल्ला होता है, सांसद संसद का बहिष्कार करते हैं, कई बार मार्शल को बुलाना पड़ता है। इतना कुछ होने के बाद जब सांसदों के वेतन या भत्ते बढ़ाने वाला विधेयक कब बिना शोरगुल के कैसे पास हो जाता है? आखिर हमारे प्रतिनिधि किस काम के एवज में इतनी सुविधाएँ लेते हैं? कितने ईमानदार नेताओं से आपका पाला पड़ा, कोई बता सकता है? लोकतंत्र के नाम पर देश की जड़ों को खोखला कर रहे हें, ये नेता, लेकिन हम कब समझ पाएँगे, यह नहीं जानते। देश में भ्रष्टाचार का कोई भी मामला हो, तो इन नेताओं की मिलीभगत सामने आती ही है। आखिर पद मिलने के बाद ये इतने स्वार्थी कैसे हो जाते हैं? मैं तो उस दिन का इंतजार कर रहा हूँ, जब कोई शिक्षक अपने शिष्य के नेता बनने के बाद खुश होए और उसके बाद उसके भ्रष्ट होने पर सरे आम उसकी पिटाई करे। मेरी एक ही चाहत है ऐसा दृश्य देखने की। कब समझेंगे, ये नेता आम आदमी का दर्द ?<br />डॉ महेश परिमलhttp://dr-mahesh-parimal.blogspot.com/https://www.blogger.com/profile/13946542623528118041noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7876849647290015560.post-87482340015103514872010-04-30T14:43:44.969+05:302010-04-30T14:43:44.969+05:30---फ़िर एक नया तरीका , भ्रष्टाचार के तालाब में और ...---फ़िर एक नया तरीका , भ्रष्टाचार के तालाब में और नई मछलियां डालने का --सिर्फ़ हर नागरिक अपना-अपना कार्य जो उसे मिला है या दिया गया है- सत्य, न्याय व उचित ढंग से, बिना कैश या काइन्ड लाभ सोचे , करे तो सब कुछ स्वयं ठीक होजायेगा; और तभी ठीक होगा और कोई राह नहीं है।<br />---एक कार्य में जितने अधिक लोग होंगे उतना ही अधिक भ्रष्ट-आचरण । कविता पढिये---<br /><br /><br />सुधार की इबारत .....<br /><br />आजकल बाढ़ आई हुई है,<br />सेवा ,देश सेवा ,समाजसेवा करने वालों व् -<br />करनेवाली संस्थाओं की ।<br />सभी अपने- अपने ढंग से ,<br />कर रहे हैं ,सेवा ,<br />लिख रहे हैं ,सुधार की इबारत ।<br />पर सुधार है कहाँ ? कहीं नहीं ,क्यों ?<br />सुधार की इबारत ,लिखना नहीं है ,<br />स्वयम को ही ,सुधार की ,<br />नींव बनाना होता है ,<br />सुधार की इमारत बनाना होता है।<br />सुधार स्वयम के सुधार से होता है,<br />क्या कोई कर पा रहा है ? shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7876849647290015560.post-26201169071632945822010-04-29T07:43:23.729+05:302010-04-29T07:43:23.729+05:30मुझे इस बात की बहुत ज्यादा कोफ़्त होती है, जब बिना ...मुझे इस बात की बहुत ज्यादा कोफ़्त होती है, जब बिना प्रयास किये हुए यह मान लिया जाता है कि यह काम तो हो ही नहीं सकता है....<br /><br />आपका यह प्रश्न "<br /><br />क्या आप समझते हैं कि जनता को सरकार को संयुक्त हस्ताक्षर अभियान के जरिए,आदेश देने का अधिकार है?"<br /><br />बिलकुल हो सकता है और होना भी चाहिए....लोकतंत्र का अर्थ ही है जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा.....लेकिन जब जनता को ही अपनी शक्ति का भान नहीं है तो कोई क्या करे...मुट्ठी भर भ्रष्ट नेताओं की दुहाई देने वाले या तो डरपोक है या निकम्मे, जब समाज को बदलना है तो भिड़ जाना ही होगा, अगर हम सोच लें तो क्या यह संभव नहीं है....गाँधी जी सत्याग्रह के बल पर अंग्रेजी हुकूमत को घुटने पर ले आये थे और हम गाँधी के देश में अपने ही लोगों की गुंडागर्दी से डर कर बैठे हुए हैं...आज पोलिटिक्स मात्र गुंडों का खेल होकर रह गया है...और इसके लिए जिम्मेवार हमारा तथाकथित माध्यम वर्गीय समाज है....<br /><br />हमने हमेशा समस्याओं से बचके निकलना सीखा है...और बाद में वही समस्याएं विकराल रूप ले लेतीं है...फिर हम आराम से कहते हैं कि अब कुछ नहीं हो सकता है....वही हाल राजनीति का रहा है....राजनीति में जाना बुरी बात है....राजनीति बुरे लोगों का काम है, भले लोग राजनीति में नहीं जाते हैं ....यही तो सुनते रहे हैं बचपन से, और हमेशा हैरानी होती रही है मुझे कि , देश के किये काम करना कैसे बुरा हो सकता है ? हमारे बड़े बुजुर्गों ने सिर्फ मुसीबतों से बचने के लिए गलत छवि बना दी और हमने यकीन कर लिया....और यही सबसे बड़ा कारण है कि आज पोलिटिक्स में गुंडों का आधिपत्य है, हमलोग ये क्यूँ नहीं सोचते राजनीति भी एक करियर है...बच्चों को उसमें भी जाना चाहिए....हर नौकरी कि तरह यह भी एक नौकरी है...इसके लिए भी पाठ्क्रम होने चाहिए....नयी पीढ़ी को ट्रेनिंग मिलनी चाहिए....कितनी अजीब बात है एक पार्क तो खूबसूरत बनाने की ट्रेनिंग है,, बिल्डिंग को सजाने की ट्रेनिंग है ....और अपने देश को व्यवस्थित करने की कोई ट्रेंनिग नहीं ....लानत है जी...<br /><br />हमारे अपने लोग कितनी बड़ी-बड़ी अन्तराष्ट्रीय कंपनियों में अपने बुद्धि-विवेक से अपना आधिपत्य साबित कर चुके हैं....क्या वो लोग अपने देश में इस काबिल नहीं थे....?? जब हम अपने देश के विदेश मंत्रालयों के प्रवक्ताओं के देखते हैं और सुनते हैं तो आत्महत्या कर लेने का दिल करता है...लगभग २ अरब आबादी वाले देश में एक ढंग का प्रवक्ता नहीं मिलता इनको जो अपने देश की गिरती साख को सम्हाल सके....जो ढंग से बात कर सके....जो भी आता है शिफारिशी जोकर होता है.....<br /><br />अब समय आ गया है कि जनता जागे और अपनी ताकत को पहचाने...उसका उपयोग करें, अगर इस तरह के हस्ताक्षर अभियान की शुरुआत हो जाए तो फिर देश को सुधरने से कोई नहीं रोक सकता है....संसद में बैठे हुए जो लोग हैं उन्हें हमने चुना है....उन्हें वही करना होगा जो, हम चाहेंगे.....और जनता हमेशा सही ही चाहेगी....लोग कहेंगे 'अदा' सपने देखती है....ये नहीं हो सकता....तो उनसे मैं कहूँगी कि जब उस दिशा में कोई काम किया ही नहीं तो उसकी सफलता पर पहले से संदेह क्यूँ करना....?? अरे दिल्ली जाना है तो दिल्ली की गाड़ी में बैठो.....घर में बैठ कर भगवान् से मानना कि हमें दिल्ली पहुंचा दो...बेवकूफी है...या फिर बिना गाड़ी में बैठने का प्रयास किये हुए मान लेना कि हम तो दिल्ली जा ही नहीं सकते गलत होगा.....<br /><br />संयुक्त हस्ताक्षर करके कोशिश तो कीजिये ....आपके आदेश का पालन होगा अवश्य ये मेरा विश्वास है.....स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7876849647290015560.post-21547576977612937352010-04-28T21:03:29.165+05:302010-04-28T21:03:29.165+05:30लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि होती है... और हम जो भी ...लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि होती है... और हम जो भी विकास करना चाहते है उसके मूल में जनता ही तो है... सो जनता को सवाल उठाने का पूरा हक है... बेहतर बात उठाई है, ये होना ही चाहिए.... और इसके लिए हमे मिल का प्रयास करने होंगे....लोकेन्द्र सिंहhttps://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7876849647290015560.post-54323182298242695112010-04-28T14:31:37.939+05:302010-04-28T14:31:37.939+05:30मेरे विचार से इतना कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं प...मेरे विचार से इतना कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं पडेगी अगर मात्र कुछ नियम लगा दिये जाएं<br />।<br /><br /><br />पहले तो सभी नेताओं की सैलरी सामान्य कर्मचारियों जितनी ही हो और किसी भी नेता चाहे वह प्रधानमंत्री ही क्यूं न हो की अधिकतम् सम्पत्ति 10 लाख से अधिक होने पर उन्हे अपदस्थ करके उनकी सारी सम्पत्ति राजकोष में जमा कर दिया जाए।<br /><br /><br />दूसरी बात- सभी नेताओं के ऐशोआराम की व्यवस्था बिलकुल ही सामान्य जनता की तरह हो। क्यूकि गद्दी उन्हे जनता की सेवा के लिये मिलती है सो सच्चे सेवक के पूरे लक्षण हों।<br /><br /><br />उन्हे भी सामान्य गड्ढे वाले सडकों पर विना ए सी वाली गाडी से ही क्षेत्रों का दौरा अनिवार्य हो तब जाकर वो सडकों और अन्य अव्यवस्थाओं की तरफ ध्यान देंगे।<br /><br /><br />चुनाव लडने की न्यूनतम योग्यता स्नातक हो तथा चुनाव का आवेदन देने के बाद उन्हें भी सिविल आदि की तरह परीक्षाएं देनी पडें, इससे शाशन की बागडोर योग्य व्यक्ति के हाथ आएगी।<br /><br /><br />चुनाव लडने वाले पर कोई भी अपराधिक मामला दर्ज न हो और इसकी पुष्टि उसके लोकल थाने से की जाए।<br /><br /><br />चुनाव लडने वाला व्यक्ति चुनावी गतिविधि के लिये राजकोष का पैसा न लगा सके और एक निश्चित राशि तक ही खर्च कर सके।<br /><br /><br />जनता को ये अधिकार हो कि जब चाहे वो सर्वकार से जबाब तलब कर सके फिर चाहे किसी भी संचार माध्यम से क्यूं नहो।<br /><br /><br />कोई भी नेता किसी भी निर्माण कार्य के पहले पूरी जनता से एस एम एस ओटिंग कराये कि जनता की उसपर राय क्या है, और यह ओटिंग फ्री हो।<br /><br /><br />इस तरह से और भी बहुत सी बातें लागू करनी होंगी पर सबसे पहले अगर ये उपरोक्त नियम लागू हो गये तो नेताई में गुण्डागर्दी तो शर्तिया कम हो जायेगी।SANSKRITJAGAThttps://www.blogger.com/profile/12337323262720898734noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7876849647290015560.post-39952892390575794192010-04-28T12:16:01.575+05:302010-04-28T12:16:01.575+05:30चरम आदर्शवादिता भरी, चरम आक्रोशवाली पोस्ट। भावना ...चरम आदर्शवादिता भरी, चरम आक्रोशवाली पोस्ट। भावना अच्छी है किन्तु आक्रोश, विवेक को विस्थापित कर देता है। हम लोग 'जनता' या 'प्रजा' ही बने रहना चाहते हैं, 'नागरिक' नहीं बनना चाहते। 'नागरिक' बनने पर लोकतन्त्र में भागीदारी निभानी पडती है, कुछ लोगों की नाराजी मोल लेनी पडती है। उसके लिए हममें से कोई भी तैयार नहीं। हम बिना कुछ खोए सब कुछ हासिल करना चाहते हैं। परिणामस्वरूप हमें कुछ भी हासिल नहीं हो रहा है और चीजें एक के बाद एक, हमारी मुट्ठी से निकलती जा रही हैं। देश को इस मुकाम पर हम ही लाए हैं, यह अपने आप यहॉं नहीं पहुँचा। हम अपने नेताओं को नियन्त्रित करने को तैयार नहीं। उन्हें खुली छूट देकर उनसे अपनी स्वार्थ सिघ्दि की प्रत्येक गुंजाइश कायम रख्ना चाहते हैं।<br />सब कुछ सम्भव है यदि हम तय कर लें, दूसरे के कुछ करने की प्रतीक्षा छोड कर खुद करने में लग जाऍं, कुछ खोने को तैयार हो जाऍं और लोकतन्त्र को अधिकार ही नहीं, जिम्मेदारी भी मानना शुरु कर दें। कामयाबियॉं हमारे कदम चूमने को बेकरार हैं, हम ही कदम बढाने को तैयार नहीं।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7876849647290015560.post-4121181103687335902010-04-28T07:48:52.691+05:302010-04-28T07:48:52.691+05:30समस्या समय आवंटन की नहीं है,समस्या प्रश्नकाल और अन...समस्या समय आवंटन की नहीं है,समस्या प्रश्नकाल और अन्य मौकों पर उठे सवालों पर सरकारी कार्यान्वयन की है। केन्द्र सरकार की इस मसले पर भूमिका जनविरोधी रही है।जगदीश्वर चतुर्वेदीhttps://www.blogger.com/profile/06417945584062444110noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7876849647290015560.post-5780448003863907522010-04-27T18:02:47.592+05:302010-04-27T18:02:47.592+05:30"प्रश्न काल के लिए साल में दो महीने आरक्षित ह...<b>"प्रश्न काल के लिए साल में दो महीने आरक्षित होना चाहिए, जिसमे सिर्फ जनता को मंत्रियों और अपने जनप्रतिनिधियों से प्रश्न पूछने का अधिकार होगा और संसद के सभापति जनता के प्रश्न काल को संचालित करेंगे ..."</b><br /><br />भ्रष्टाचारी लोग इसमें भी भ्रष्टाचार का रास्ता निकाल लेंगे। देश में व्याप्त भ्रष्टाचार की जड़ तो वास्तव में हमारी कुशिक्षा है। देश के स्वतन्त्र हो जाने के बाद भी हमारी अपनी कोई शिक्षानीति नहीं बनी और हम आज तक अंग्रेजों की बनाई शिक्षनीति, जिसका उद्देश्य ही भ्रष्टाचार को बढ़ा कर भारत को लूटना था, को ही कुछ फेरबदल के साथ अपनाये हुए हैं। जरूरत है तो हमारी अपनी शिक्षानीति को जो अपनी संस्कृति, सभ्यता और राष्ट्र के प्रति समर्पण सिखाये। शिक्षा से ही संस्कार बनते हैं और संस्कार से विचार जो कि हमसे कर्म करवाते हैं। आज हम भ्रष्टाचार जैसे कर्म कर रहे हैं तो सिर्फ कुशिक्षा के कारण ही।<br /><br />अन्त में इतना अवश्य कहूँगा कि लोगों में जागरूकता बढ़ाने का आपका कार्य अत्यन्त सराहनीय है।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09998235662017055457noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7876849647290015560.post-5214984587696590522010-04-27T14:04:07.635+05:302010-04-27T14:04:07.635+05:30जनता के प्रश्न स्वम जनता पूछेगी तो प्रश्न पूछने के...जनता के प्रश्न स्वम जनता पूछेगी तो प्रश्न पूछने के जो पैसे लिए जाते है वे किसको मिलेंगे |सर जी मेरा तो कहना यह है की "अपने माहोल पे इल्जाम लगते क्यों हो ?तुमने खुद राह्जनों को नए चहरे बख्शे अब लुटे हो तो लुटो शोर मचाते क्यों हो | बुलबुलें खुश थी खुशियों के तराने गाये ,लेके खारों से achchhon को चमन सौंप दिया ,शीश dhuntee है अब फूलों kee ye ghaayal khushboo, ye तुमने kyaa kiyaa ye kisko चमन सौंप दियाBrijmohanShrivastavahttps://www.blogger.com/profile/04869873931974295648noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7876849647290015560.post-41860878695443511432010-04-27T08:42:08.486+05:302010-04-27T08:42:08.486+05:30aaj ek aam insan kathputali ban ke rah gaya hai, j...aaj ek aam insan kathputali ban ke rah gaya hai, jab hum doosron ke isaare par nachna band kar denge, tabhi yah andolan aage badega,<br /><br />badiya prastuti ke sath ek sandesh jis par<br />hum sabhi ko amal karna chahiye<br />aapko dhnyvadसंजय कुमार चौरसियाhttps://www.blogger.com/profile/06844178233743353853noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7876849647290015560.post-78612285082544198322010-04-27T05:34:24.473+05:302010-04-27T05:34:24.473+05:30काफी विचाराधीन समस्या और गंभीर सोंच,
काश इस सोंच क...काफी विचाराधीन समस्या और गंभीर सोंच,<br />काश इस सोंच को यथार्थ मिले .........Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09084695524843643431noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7876849647290015560.post-34681410105974026952010-04-27T03:00:05.896+05:302010-04-27T03:00:05.896+05:30दशा सही में विचारनीय है देश की..देश की राजधानी में...दशा सही में विचारनीय है देश की..देश की राजधानी में जब स्थिती खराब है तो बाकी जगह के बारे में बात करना बेमानी है। हर व्यक्ति जहां सत्ता में है, नौकरी में है, वहीं पर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने पर जुटा है। पर सिर्फ सवाल पूछने से कुछ नहीं होगा। जनता को दवाब बनाना ही होगा, तभी कुछ हो पाएगा। आज देश की राजधानी के अस्पतालों में, शिक्षण संस्थानों में आसपास दूर दराज के लोग आते है. क्योंकी वहां स्वास्थ्य औऱ शिक्षा की सुविधा उपलब्ध नहीं है। सवाल पूछने के लिए दिल्ली आने की कोई जरुरत नहीं है। सभी सांसदों को अपने ही इलाके में सवाल का जवाब देने की व्यवस्था करनी होनी चाहिए। बीमार पड़ने पर अपने ही जिले के स्वास्थ्य केंद्रों पर नेताओं को इलाज करना चाहिए। ताकि उन्हें पता चले की वहां के हालात कैसे है। उनके बच्चे प्राइवेट स्कूलों में क्यों पढ़ते हैं, क्योंकी सरकारी स्कूल की स्थिति बिगाड़ी हूई है नेताओं ने। हर नागरिक को जबतक अपने ही इलाके में मूलभूत सुविधाएं नहीं मिलती तब तक कुछ नहीं हो सकता। हर काम के लिए दिल्ली भागने की आदत नहीं होनी चाहिए। सवाल पूछने के लिए अगर दिल्ली आना पड़े तो क्या फायदा। नेता जब वोट मांगने दरवाजे पर आते हैं. तो वोटर को अपने प्रशन का उत्तर भी अपने घर पर न सही, अपने इलाके में मिलना ही चाहिए। ठीक है कि भ्रष्टाचार को खत्म नहीं किया जा सकता पर उस पर प्रभावी अंकुश लगाया जा सकता है, ताकी उसकी मार से जनता त्राही त्राही न करे। यही स्थिती हर क्षेत्र में लायी जा सकती है।Rohit Singhhttps://www.blogger.com/profile/09347426837251710317noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7876849647290015560.post-3941759952786761932010-04-26T23:38:52.876+05:302010-04-26T23:38:52.876+05:30भ्रष्टाचार का विषय बहुत ही व्यापक है , यह नया भी न...भ्रष्टाचार का विषय बहुत ही व्यापक है , यह नया भी नहीं है । आचार्य चाणक्य से लेकर अलाउद्दीन खिलज़ी , फ़िरोज़ शाह ने लेकर राबर्ट क्लाइव और जवाहर लाल नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक भ्रष्टाचार के किस्से भरे पड़े हैं । क्राइम फ़ॉर पैशन और क्राम फ़ॉर मनी ही मुख्य अपराध होते हैं । इस विषय पर बहुत विस्तृत पोस्ट फिर कभी लिखेंगे ।<br /><br />धन्यवाद ।विजय प्रकाश सिंहhttps://www.blogger.com/profile/17982982306078463731noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7876849647290015560.post-81399568358613131362010-04-26T13:57:57.515+05:302010-04-26T13:57:57.515+05:30प्रजातंत्र में जनता कि सरकार जनता के लिए कही जाती ...प्रजातंत्र में जनता कि सरकार जनता के लिए कही जाती है किन्तु हम तो हर बार ठगे जाते हैं. ये जानकर भी ये हमारे जनप्रतिनिधि दुबारा नहीं नजर आनेवाले . संसद में सिर्फ महीने कम हैं ये दो महीने साल में मांग रहे हैं या फिर पूरे संसद के कार्यकाल में. संसद में हर सत्र में कुछ दिन होने चाहिए जिसमें जनता सीधे सवाल पूछ सके. उसका माध्यम जो भी रखा जाए. अब इस प्रजातंत्र के वर्त्तमान स्वरूप में ये आवश्यक हो गया है कि निरंकुश सांसदों को पांच साल के लिए ये लाइसेंस न दे दिया जाय. अगर चुना गया प्रतिनिधि अपनी जनता का प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ है तो जनता को सामने आने का अधिकार भी होना चाहिए क्योंकि कितने सांसद तो सिर्फ नाममात्र के सांसद होते हैं. १८ वर्ष के मतदाताओं के लिए ये चुनाव क्या अर्थ रखता है? अगर फ़िल्म अभिनेता सामने है तो उसे उसका ग्लैमर दिखाई देता है और वह चुन कर आ भी जाता है. फिर वह सिनेमा और संसद के बीच न्याय नहीं कर पाता है. कुछ को तो सम्पूर्ण कार्य काल में भी एक भी प्रश्न पूछने या फिर अपने क्षेत्र कि समस्या को प्रस्तुत करने की आवश्यकता ही महसूस नहीं होती है. अब संसद में जनता कि भागीदारी इस रूप में अत्यंत आवश्यक हो चुकी है. इस तरह से जनता की प्रश्न प्रहार में साझीदारी न सिर्फ सरकार में विश्वास को बढ़ाएगी बल्कि ये जनप्रतिनिधि निरंकुश बादशाह होने के अहसास से भी मुक्त हो सकेंगे. चुनाव में मतदान के प्रति जो निराशा और उदासीनता आज एक बड़े तबके में है , उसका शमन हो सकता है और फिर प्रतिनिधि का चुनाव पार्टी के नाम पर नहीं बल्कि उसके अपने व्यक्तित्व और कृतित्व के अनुसार ही होगा.रेखा श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7876849647290015560.post-79197985787058082132010-04-26T13:40:29.005+05:302010-04-26T13:40:29.005+05:30काजल कुमार जी आप अपने बहुमूल्य विचार और सुझाव तो र...काजल कुमार जी आप अपने बहुमूल्य विचार और सुझाव तो रखिये १०० शब्दों में ,फिर हम सब मिलकर जैसे देश को आजादी दिलाये थे , उसी तरह बिल्ली के गले में घंटी भी बांध देंगे और इन भ्रष्टाचारियों से देश को मुक्ति भी दिला देंगे / बस जरूरत है मतभेद भुलाकर एकजुट होने की /honesty project democracyhttps://www.blogger.com/profile/02935419766380607042noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7876849647290015560.post-6469972280888449872010-04-26T11:19:55.192+05:302010-04-26T11:19:55.192+05:30आइडिया तो अच्छा है पर बिल्ली के गले में घंटी बांधे...आइडिया तो अच्छा है पर बिल्ली के गले में घंटी बांधेगा कौनKajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7876849647290015560.post-59927943449609518412010-04-26T02:29:29.804+05:302010-04-26T02:29:29.804+05:30अच्छा विचार है, सूचना के अधिकार कि तरह ही हमारे लो...अच्छा विचार है, सूचना के अधिकार कि तरह ही हमारे लोकतंत्र के विकास में मील का पत्थर साबित हो सकता है. इस तरह के तरीके निकालने कि आवश्यकता इसीलिये पड़ती है क्योकि हम अच्छे प्रतिनिधि नहीं चुन पाते. पता नहीं हम इतने सक्षम कब होंगे कि धर्म, जाती, संप्रदाय से ऊपर उठ कर चुनाव कर सकें. पता नहीं कब पढ़े लिखे लोग कब राजनीती कि और रुख करेंगे और कब तक हमें कदम कदम पर अपने अधिकार मांगने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा. इस दिशा में इतना सोचने और एक रास्ता निकालने के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद....! आशा है कि इस दिशा में आगे प्रयास हो सकेगा.Aseem Trivedihttps://www.blogger.com/profile/06382269979742692496noreply@blogger.com