ख़ूनी टेंक नंबर-610जिससे गैस लिक हुआ था
हमें शर्म आती है अपने आप को भारतीय कहते हुए ? क्योंकि यहाँ न्याय और जाँच कर दोषियों को सजा देने कि कोई भी प्रक्रिया बची ही नहीं है या यों कहिये कि सारी कि सारी इंसानियत और न्याय पैसे के जूतों तले दब गयी है | अमेरिका के बारे में तो सुना था कि वहाँ ड्रेकुला भी रहते हैं और उनका बहुत ही जबरदस्त प्रभाव है और स्केल्प एंड बोन नाम कि एक ताकतवर संस्था भी है जिसके कई सदस्य वहाँ के राष्ट्रपति से लेकर न्याय के सर्वोच्च पद पर भी विराजमान हो चुके हैं |
लेकिन लगता है कि हमारे देश में भी ड्रेकुला लोग न्याय व्यवस्था में और देश को चलाने कि व्यवस्था में अपना पहुंच बना चुके हैं और इसका सबसे ताजा उदाहरण है यूनियन कार्बाइड गैस कांड में आया ताजा फैसला |
इसका उम्दा पक्ष इस प्रकार है जो हमारे देश के उम्दा न्याय को दर्शाता है ----
1-यह फैसला 25 वर्ष बाद आ पाया ,वाह रे हमारे देश कि जाँच एजेंसियां और हमारी न्याय पालिका,शाबास | इस हादसे में लगभग 15000 लोग मारे गए थे और कई पीढ़ी आज भी इसके दर्दनाक प्रभाव को शारीरिक अपंगता के रूप में झेलने को मजबूर है |
2-इस में मुख्य अभियुक्त यूनियन कार्बाइड के चेअरमेन वारेन एंडरसन का अभियुक्तों के लिस्ट में नाम तक नहीं है | ये अभी भारत सरकार कि मेहरबानी से अमेरिका में सुरक्षित रहकर ऐश कर रहा है ,बेशर्म कहिं का ...
3-आठ दोषियों में से एक कि मृत्यु हो चुकी है और सात को सिर्फ दो साल कि सजा सुनाई गयी है,जिसे सजा के तुरंत बाद जमानत भी दे दी गयी ,वाह रे न्याय ...?
4-एक भी ऐसे व्यक्तियों को सजा नहीं दी गयी जो ऐसे खतरनाक जहरीले रसायन जैसे उद्योग कि सुरक्षा के लिए सरकारी प्रशासनिक जिम्मेवारी को देख रहे थे |
5-हमारे देश कि सरकार या यों कहें कि निक्कमी सरकार ने वारेन एंडरसन जैसे अपराधियों के समप्पति को जप्त करने कि अन्तराष्ट्रीय स्तर पर कोई कोशिस नहीं कि ,जिससे उसकी समप्पति को नीलाम कर गैस हादसे के पीड़ितों को थोड़ी बहुत सहायता का मरहम पहुंचाया जा सके |
6-यूनियन कार्बाइड को इस गैस कांड को बखूबी अंजाम देने के लिए और 25 साल तक फैसले में तिकरम के जरिये देर करवाने के लिए सिर्फ 5 लाख जुरमाना किया गया है,वाह रे हमारे देश कि सरकार और हमारे देश कि न्याय व्यवस्था -क्या मोल लगाया है इंसानियत और संवेदनशीलता का ,यह मोल ज्यादा होता अगर सोनिया गाँधी जी के परिवार का या मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के परिवार का कोई सदस्य इस गैस कांड में मारा गया होता ..?
निश्चय ही यह फैसला भारतीय न्याय व्यवस्था के काले इतिहास में दर्ज होगा ,जिससे आने वाली पीढ़ी इस फैसले को न्याय व्यवस्था में कैसे-कैसे लोग है हमारे देश में इसको पहचानने के लिए प्रयोग करेगी | हम इस फैसले का पुरजोड़ विरोध करते हैं और सभी ब्लोगरों से आग्रह करते हैं कि इस फैसले का मानवीय आधार पर विरोध करे | हम भारत सरकार से भी मानवीय आधार पर आग्रह करते हैं कि इस मामले में फैसला देने वाले जज के खिलाप भ्रष्टाचार कि जाँच करे और इस फैसले को जनहित में सर्वोच्च न्यायालय के अधीन लाकर उच्चस्तरीय न्यायिक विवेचना करे और यूनियन कार्बाइड के चेअरमेन वारेन एंडरसन को ह़र हाल में गिरफ्तार कर उसकी सारी संपत्ति कि नीलामी कर गैस पीड़ितों में बराबर बाँट दे | ऐसा करना ही सिर्फ न्याय होगा बाकि तो सब बकबास हो रहा है न्याय के नाम पर और यही कारण है कि नक्सलवाद और उग्रवाद हमारे देश में मजबूरन पैदा हो रहा है |
सवाल वही है ?
ReplyDeleteक्या करें?
अब अगर इंसाफ़ के लिए हथियार उठा लिए तो कोन ज़िम्मेदार होगा ?
is desh ki nyay prakriya yahi hai
ReplyDeletehttp://sanjaykuamr.blogspot.com/
कुछ नहीं होगा यहां कुछ नहीं होगा...
ReplyDeleteयह तो होना ही था.
ReplyDeleteकौन किससे गुहार करे???
न्यायालय की प्रक्रिया के वारे में हमें लगता है हम आप ठीक से मामला नहीं समझ पा रहे हैं केश को कोर्ट के सामने रखती हैं सरकार की ऐजैंसियां।उस वक्त सेकुलर अर्जुन सिंह मुख्यमन्त्री थे जो नहीं चाहते थे कि दोषियों को सजा मिले इसलिए केश को माननीय न्यायालय के सामने ठीक से नहीं रखा गया.जो तथ्य माननीय न्यायलय के सामने रखे गए वो अधूरे थे।इसलिए इस अन्याय के लिए सेकुलर गद्दार नेता जिमेवार हैं न कि न्यायालय।
ReplyDeleteसादर वन्दे !
ReplyDeleteआप किनसे उम्मीद रखते हैं इन निकम्मे नेताओं से या बेवकुफो से भरे न्यायालय के न्यायधिसों से |
यह अंधेर नगरी है जहाँ चौपट राजा राज करता है! बाकी आप समझ गए होंगे !
रत्नेश त्रिपाठी
जंगल का कानून चलता है जी
ReplyDeleteनाम है न्यायालय। न्यायालय मे प्रकरण निपटारे के लिये कितना वक्त लग जाता है यह किसी से छिपा नही है। क्या कहें अपने देश के बारे मे फजीहत अपने देश की है। इस विडम्बना को आपने बड़े अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया है। प्रभू! कब विश्वास होगा तेरे घर देर है अन्धेर नही।
ReplyDeleteविचारनीय पोस्ट।
ReplyDeleteशर्मनाक।
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करे कोई, भरे कोई?
हाजिर है एकदम हलवा पहेली।
भ्रष्ट वो - भ्रष्ट को - जो भ्रष्ट कहे
ReplyDeleteक्यूँ समझते नहीं हो भाई सा"ब?
विचारणीय आलेख
ReplyDeleteआपकी पोस्ट चर्चा ब्लाग4वार्ता पर भी है.
जोरदार लेख ।
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