दोषी जजों को सजा देने के लिए सरकार न्यायिक जवाबदेही विधेयक पर काम कर रही है। निश्चय ही न्याय और न्याय करने वालों कि जवाबदेही तय होनी चाहिए ,क्योंकि आज देश और समाज कि जो हालत है ,उसका एक बड़ा कारण न्याय करने वालों कि जवाबदेही को पूरी तरह तय नहीं किया जाना और दोषियों को सख्त सजा नहीं दिया जाना भी है / हमारे हिसाब से एक कुकर्मी या अपराधी उस भ्रष्ट जज से कम गुनेहगार है ,जिस जज ने सुरा,सुन्दरी,पैसा और अपने निकम्मेपन से उन अपराधियों को सालों सजा होने से बचाने का काम किया है /
अब सवाल उठता है कि यह विधेयक कैसा हो जिससे न्याय ,जो कि आज भ्रष्टाचार कि वजह से देरी और फिर अन्याय में बदल जाता है ,को रोका जा सके / आज अदालतों कि कमी का रोना रोया जाता है ,लेकिन इस बात कि जाँच और विवेचना कोई नहीं करना चाहता है कि ,जिस केस का फैसला एक या दो तारीखों में हो जाना चाहिए था ,वही केस सालों और सैकड़ों तारीखों के बाबजूद भी ,फैसले का इंतजार करता रहता है / भ्रष्ट वकील ,भ्रष्ट जजों के साथ सांठ-गांठ कर गवाहों को डराने ,सबूतों को मिटाने और अपराधियों को बचाने जैसे गम्भीर कार्यों को अंजाम देते हैं ,यही नहीं ज्यादातर भ्रष्ट वकील और जज का इस देश में ठगी और सत्ता कि दलाली का भी धंधा जोरों पर चल रहा है / इन लोगों के साथ मिलकर कलयुगी बाबा और भ्रष्ट IAS और IPS भी समाज में आतंक का माहौल बनाकर भोले-भाले लोगों को डरा धमकाकर इस लोकतंत्र को शर्मसार करने का काम खुले आम कर रहें हैं /
अदालत एक ऐसी जगह है जिसके तरफ हर इमानदार,सच्चा और कानून का आदर करने वाला व्यक्ति अपनी सुरक्षा के लिए देखता है / लेकिन अगर उसी अदालत में जब किसी इमानदार,सच्चा और कानून का आदर करने वाले व्यक्ति को कानून को भ्रष्टाचार और अपराधियों के गठजोर द्वारा मसलते हुए देखने को मिलता है तो ,वह व्यक्ति कानून और न्यायालय को बेकार कि कसरत समझ कर खुद भी ,अपने तरीके से न्याय या उसकी भरपाई में लग जाता है और आज देश में यही हो रहा है /
अब क्या ऐसा किया जाय कि इस स्थिति को बदल कर न्याय और न्यायालय को एक बार फिर आम लोगों के नजर में अपराधियों के लिए खौफ और न्यायप्रिय लोगों के लिए सुरक्षा के रूप स्थापित किया जा सके ?
ऐसा हो सकता है जब सरकार इस न्यायिक जवाबदेही विधेयक को सही और ईमानदारी से तैयार कर उसमे ऐसे सख्त प्रावधान कि व्यवस्था करे कि अगर जानबूझकर किसी जज या वकील ने न्याय में देरी किया हो या न्याय को अन्याय में बदलने के लिए किसी कुकर्म जैसे सुरा,सुन्दरी, पैसा,मकान,दुकान या किसी अन्य प्रकार से रिश्वत ली हो ,तो ऐसे वकीलों और जजों कि सेवा समाप्त कर उसपर न्याय का गला घोटने जैसे गंभीर अपराध के तहत मुकदमा चलाया जाय और इसमें सजा का प्रावधान फांसी और उम्र कैद तक हो और जिसे सख्ती से अमल में भी लाया जा सके / इस विधेयक में अगर ऐसी व्यवस्था कर दी जाय कि दो साल से ज्यादा लम्बे चल चुके मुकदमें का फैसला नहीं आने का कारण ,अगर मुकदमा करने वाले के नजर में भ्रष्टाचार और जज या वकील का निकम्मापन है तो वादी यानि मुकदमा करने वाले को जज और वकील के खिलाप न्याय में लापरवाही के तहत मुकदमा दर्ज करने का अधिकार हो / इस विधेयक में जजों को हर छः माह पर अपनी सम्पति और व्यवसाय कि जानकारी देना आवश्यक कर दिया जाय / जजों के चरित्र से सम्बंधित जानकारी भी सार्वजनिक किया जाय ,क्योंकि पारदर्शिता लोकतंत्र और न्याय दोनों के लिए अतिआवश्यक है /अगर किसी जज के 75% फैसले उच्च अदालतों में किसी नए सबूत के आये बिना ही पलट दिया जाय या उसे पलटने कि जरूरत परे तो उस जज को अयोग्य घोषित कर सेवा से स्वेक्षिक अवकाश दे दिया जाय / न्याय और न्यायिक व्यवस्था सिर्फ और सिर्फ इमानदार,सामाजिक सोच और कानून के प्रति सम्मान रखने वालों के हाथ में सुरक्षित रहे ,इसके लिए सरकार को आम और खास इमानदार लोगों से विचार और सुझाव मंगवाकर इस विधेयक में शामिल करना चाहिए ,जिससे सही मायने में न्यायिक जवाबदेही तय कि जा सके / न्याय में किसी भी प्रकार कि भूल और लापरवाही बेहद खतरनाक है / हम इस दिशा में कानून के जानकार ब्लोगरों से आग्रह करेंगे कि वे भी इस विधेयक को ज्यादा से ज्यादा कारगर बनाने के लिए अपने विचारों और सुझावों को ब्लॉगजगत तथा सरकार दोनों को बताने का कष्ट करें /
मेरा आग्रह केवल इतना है कि न्यायपालिका को आरटीआई के दायरे से बाहर न रखा जाए। इसी से जवाबदेही काफी कुछ सुनिश्चित हो जाएगी।
ReplyDeleteन्यायाधीशों को जवाबदेह होना चाहिए। दुराचरण साबित होने पर उन्हें कठोरतम दंड भी दिया जाना चाहिए, एक सामान्य नागरिक से बहुत अधिक।
ReplyDeleteलेकिन अदालतों की कमी का उल्लेख रोना रोना नहीं है। जब अदालतें आवश्यकता की 20 प्रतिशत हों तो मुकदमों के निर्णय में देरी स्वाभाविक है। इसी से भ्रष्ट लोगों को अपना कौशल दिखाने का अवसर मिलता है। यदि न्याय शीघ्र होने लगे तो भ्रष्टाचार का ग्राफ 80 प्रतिशत वैसे ही नीचे आ जाएगा। तब उस पर काबू पाना भी आसान होगा। आज किसी अदालत में 80 मुकदमों की सूची बनती है। जब कि जज की काम की क्षमता 5-10 से अधिक नहीं होती। वह जानता है कि शेष मुकदमों में पेशी बदलना है। जैसे ही एक पक्ष पेशी बदलने को कहता है अदालत की चढ़ बनती है। न्यायिक व्यवस्था को इतने रोग लगे हैं कि बखान करना भी कठिन है। लेकिन उन्हें दुरुस्त करने का काम केवल अदालतों की संख्या बढ़ा कर ही किया जा सकता है। अन्यथा सभी प्रयास निरर्थक होंगे।
kathor dand milna chahiye
ReplyDeletedesh main jobhi kanoon ka gunahgar hai
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
न्यायपालिका पर हम किसी भी तरह के अंकुस के खिलाफ हैं क्योंकि नयायपालिका में सुधार के नाम पर ये गद्दार नेता नयायपालिका को पूरी तरह पंगु बना डालेंगे बाकी प्सासन की तरह
ReplyDeleteआप जानते ही होंगे कि आज विना नेता के फोन के छोटे से छोटा काम भी नहीं हो पाता
वेशक आज बहुत लोगों को नयाय नहीं मिलता लेकिन नयायपालिक पर सरकार के नियन्त्रण से किसी को भी न्याय नहीं मिलेगा
बैसे हम कानून के जानकार नहीं
आप की पोस्ट के कई शव्द राईट सईड मै दब रहे है, कृप्या लेम्पलेट को थोडा छोटा करे, अभी बहुत चोडा है, ओर इसे HTML कोड मै जा कर साबधानी पुर्वक सेट कर सकते है
ReplyDeleteन्याय पालिका को हर केस के लिये एक निश्चित समय देना चाहिये, ओर उसी समय के अंदर केस को समाप्त कर देना चाहिये चाहे कोई भी पक्ष कितनी ही तारीखे बदलवाता रहे, ओर अगर्हमे न्याय पर वि-श्वास नही तो उस फ़ाईल को दोवारा खुलवा सकता है, दोवार सुनवाई हो,
I repeat the comments of Sh.Kumar Radha raman ji, Dwivedi ji and Bhatia ji..
ReplyDeleteउन्हें जवाबदेह होना ही चाहिए।
ReplyDelete