Tuesday, May 25, 2010

राष्ट्रिय ब्लॉग और ब्लोगर विकाश व सुरक्षा संगठन कैसा हो ------?

आज देश में लाखों संगठन हैं, जो वजूद में हैं ,जिनमे से कुछ संगठन ही हैं जो जनसहयोग से जमीनी स्तर पर सही मायने में सार्थक काम कर रही है / ज्यादातर संगठन ऐसे भी हैं जो सिर्फ NGO के सरकारी फंड और सामाजिक विकाश के योजनाओं में सरकारी भ्रष्ट व्यवस्था के लिए पैसों कि बन्दर बाँट में सिर्फ और सिर्फ दलाली के अलावा कुछ भी नहीं कर रही है और ऐसे संगठनों ने अच्छे संगठनों के साख में भी बट्टा लगाकर उसके तीब्र विकाश में बाधा खरा करने का काम किया है / 
दरअसल किसी भी संगठन के सफलता के लिए उसका पारदर्शी,जनहित से जुड़ाव,लक्ष्यों के प्रति कठोरता,कार्यकर्ताओं कि समुचित सुरक्षा और इमानदार जनसहयोग आधारित आर्थिक आधार बहुत जरूरी है /
आज सारी समस्याओं के मूल में पारदर्शिता का अभाव,निगरानी व्यवस्था का नाश और इन्सान के जमीर का खत्म हो जाना मुख्य है / आज भ्रष्टाचार फल-फूल रहा है उसकी वजह है कि मंत्रियों और अधिकारियों को पता है कि कोई पूछने वाला नहीं आ रहा है /
आज समाज में किसी भी सत्य,न्याय और इंसानियत के समर्थन में उठे आवाज को तुरंत कुचल दिया जाता है या सामाजिक आतंक जिनका सम्बन्ध भ्रष्ट व्यवस्था से है ,के द्वारा अपने कुतर्क और तिकरम से सही व्यक्ति को ही गलत साबित कर दिया जाता है और सारा समाज आतंक कि वजह से एक शब्द भी नहीं बोल पाता है / हमारी न्याय व्यवस्था पर इस तरह का प्रभाव डालने वाला कोई भी संगठन नहीं है जो सत्य कि रक्षा हर हाल में हो ,चाहे उसके लिए वादी और प्रतिवादी दोनों का ही ब्रेनमेपिंग  व लाई डिटेक्टर टेस्ट क्यों न करवाना परे ,के लिए न्याय व्यवस्था को मजबूर कर सके / जरा सोचिये आप सच बोल रहें हों और तिकरम तथा आतंक कि वजह से उसे गलत साबित कर दिया जाय तो क्या दुबारा आप ऐसा सत्य बोलने का जोखिम उठाएंगे ?  आज समाज और देश में हर जगह यही हो रहा है और मानवता कराह रही है /
संगठन बन रहें हैं लेकिन इसलिए कि सभी सदस्यों को महानगर में बड़ा बंगला ,बड़ी कार और अय्यासी का साधन मिले और सत्ता के भ्रष्टाचार कि गंगा में डुबकी लगाया जाय / ऐसे संगठन समाज और देश के लिए घातक हैं /
हाँ हर व्यक्ति का इतना स्वार्थ तो होना चाहिए कि किसी भी ईमानदारी भरे कार्य को कर वह अपना,अपने दो बच्चों का सात्विक भोजन से पेट भर सके और अपनी मूल भूत जरूरतें पूरी कर सकें / हमारे देश में समाज को सार्थक बदलाव और सही दिशा देने वाला दो ही पद है और वह है IAS और IPS सिर्फ ये अगर इमानदार हो जायें या इनसे अगर हम ईमानदारी से काम किसी भी तरह करा सकें तो इस देश के भ्रष्ट मंत्री भी असहाय हो जायेंगे / लेकिन इस देश का दुर्भाग्य है कि जनता के पैसों से मोटी तनख्वाह पाने के बाबजूद ये जनता को लूटने का ही काम कर रहें हैं / आज इनके द्वारा किये गए गलत कार्यों का कोई भी संगठन ईमानदारी से जाँच कर इनके ऊपर न्यायिक  कार्यवाही हो तथा इनको सजा मिले इसके लिए ठोस प्रयास नहीं कर रही है ,जिसकी वजह से समाज में इंसानियत मरती जा रही है /
हमारा मानना है कि इमानदार पत्रकारों को आर्थिक सहायता नहीं मिलने कि वजह से मिडिया मर चुकी है या भ्रष्टाचार के तलवे चाट रही है / ऐसे में अगर हमसब ब्लॉग को एक सशक्त मिडिया,समाज में जागरूकता और हर सच्चे,अच्छे,इमानदार इन्सान को देश व्यापी सुरक्षा प्रदान करने वाले साधन के रूप में इस्तेमाल करें तो सबसे बेहतर होगा और प्रभावी भी / इसके लिए हमलोगों को राष्ट्रिय स्तर पर एक संगठन बनाना चाहिए और उसे आपस में ही नहीं हर किसी के लिए पारदर्शी भी बनाना चाहिए / रही इसके लिए आर्थिक आधार कि बात तो शुरुआत हम सब आपसी स्वेक्षिक  सहयोग से कर सकते हैं / उसके बाद अगर हमें किसी अच्छे उद्देश्य के लिए पूरे देश के नागरिकों को जोड़कर  उनसे कुछ मांगना भी परता है तो हमें शर्म नहीं करनी चाहिए / हमें किसी भ्रष्ट मंत्री ,पार्टी या भ्रष्टाचार में सहयोग देकर आर्थिक आधार बनाने में शर्म महसूस करना चाहिए / ऐसा करने से तो अच्छा रहेगा हम पूरे देश से एक बार दस रूपये का भीख मांग लें ,अगर नेक उद्देश्यों के लिए हमें पच्चीस करोड़ लोग भी दस रुपया दे देंगे तो तो हमारा ईमानदारी भरा आर्थिक आधार बन जायेगा और हम ईमानदारी व निडरता के साथ देश ,समाज और इंसानियत कि सेवा कर पाएंगे / हमारे ख्याल में ऐसा करने से  ब्लोगरों के संगठन को देश के हर गाँव तक पहुँचाया जा सकेगा और लोग इस संगठन से हार्दिक रूप से जुरेंगे  / यह हमारा विचार है वैसे इस पे बहस और आप सब के सार्थक राय से ही अमल या परिवर्तन किया जायेगा / कोई महानुभाव अगर हमें इस बारे में सुझाव देना चाहते हैं तो हमें फोन कर सकते हैं -09810752301पर या इ.मेल-honstyprojectdemocracy@gmail.com पर कर सकतें हैं / आप सबका स्वागत है एक नेक काम के एकजुटता के लिए  / हम आपके विचारों और सुझावों के लिए आपका सदा ऋणी रहेंगे /

Thursday, May 20, 2010

दिल्ली में इंसानियत बड़ा या हैवानियत ----?

 

जिसकी जान लेने कि कोशिस कि गयी वही और उसका परिवार आतंकित है ,निश्चय ही यह इंसानियत और मानवता के लिए शर्मनाक है / पिछले दिनों हमारा  सामना एक ऐसे घटना से हुआ है / जिससे हम यह पोस्ट लिखने के लिए बाध्य हुए हैं / हुआ ये कि 13 मई के रात 08:30 से 09:30 के बीच श्री वेश्य जो कि हमारे पडोस के 117 नंबर फ्लेट में रहते हैं / पर कुछ अज्ञात हमलावरों ने जान लेवा हमला कर दिया / शायद हमलावर उनकी जान लेना भी चाहते थे ,लेकिन वो कहते हैं न कि जाको राखे साईया मार सके न कोई ,उनका जिन्दा बच जाना किसी चमत्कार से कम नहीं /  आज श्री वेश्य और उनका परिवार इतना डरा और आतंकित है कि उसे किसी से अब न्याय का आशा नहीं रहा और वह कुछ भी ऐसा बयान या नाम नहीं लेना चाहते ,जिससे समाज में आतंक फ़ैलाने वाले उनपर दुबारा हमला कर उनको पूरी तरह खत्म कर दे / दरअसल ये हमला सिर्फ श्री वेश्य पर नहीं बल्कि पूरी कानून और न्यायिक व्यवस्था पर है ,इसी तरह के हमलों से और ऐसे हमला करने वालों को नहीं पकड़ने से ही समाज में आतंक और भय का माहौल बनता जा रहा है और कानून व्यवस्था से लोगों का विश्वास उठता जा रहा है / मुझे लगता है हम और हमारी पुलिस जानबूझकर ऐसे लोगों को पकड़ना नहीं चाहती,जरा सोचिये कोई पुलिस का बड़ा अधिकारी अगर श्री वेश्य को यह विश्वास दिला पाता कि "आप घबराएँ नहीं आप सच-सच बताइए,आपका कुछ नहीं बिगार पायेगा कोई ,हम आपके साथ हैं " तो शायद श्री वेश्य और उनके परिवार को भी आतंक के खिलाप लड़ने में कुछ ताकत मिलता / लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा किसी भी पुलिस अधिकारी ने नहीं किया / रही बात शांति अपार्टमेन्ट के निवासियों कि  ,तो पता नहीं ,उनको किसका डर और भय सता रहा है ,एक दो व्यक्ति को छोड़कर कोई श्री वेश्य के अस्पताल से वापस आने के बाद उनका मानवता के नाते हाल-चाल भी पूछने नहीं गया / 

अब सवाल ये कि क्या ऐसे हमलों में ---

*अगर कोई पीड़ित  डर और आतंक से कार्यवाही नहीं करना चाहता तो, क्या कार्यवाही नहीं होनी चाहिए,दोषियों को पकड़ा नहीं जाना चाहिए ?

*क्या ये सिर्फ श्री वेश्य पर हमला है या पूरे समाज को आतंकित करने कि साजिश है ? 

*क्या कानून और प्रशासन का ये फर्ज नहीं बनता कि किसी भी कीमत पर ऐसे जघन्य अपराध करने वालों को पकड़ा जाय ?

*क्या दिल्ली पुलिस के मुखिया को खुद आकर श्री वेश्य का हाल-चाल पूछकर उनके साथ हुए इस घटना कि जाँच कि खुद निगरानी नहीं करनी चाहिए ?

*क्या ये न्याय का तकाजा नहीं कि एक पीड़ित व्यक्ति  ही अपनी व्यथा व्यक्त करने में आतंक अनुभव कर रहा है तो देश का राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री और न्याय का सर्वोच्च मूर्ति को भी श्री वेश्य को न्याय दिलाकर समाज में आतंक और भय का वातावरण फ़ैलाने वालों को सख्त से सख्त सजा देने का प्रयास करना चाहिए,जिससे ऐसी शर्मनाक स्थिति को रोका जा सके / ये सिर्फ श्री वेश्य पे हमले का ही  मामला नहीं बल्कि समाज में आतंक और भय के व्याप्त   होने का गम्भीर मामला है /

हम यहाँ सबसे इंसानियत के नाते आग्रह कर रहें हैं कि आप चाहे पुलिस अधिकारी हों ,देश के प्रधानमंत्री हों ,देश के राष्ट्रपति हों , देश के सर्वोच्च न्याय मूर्ति हों या आम नागरिक / इस हमले के लिए जिम्मेवार व्यक्ति को पकड़ने और उसे सख्त से सख्त सजा दिलाने में अपना हर संभव सहयोग दें क्योंकि यह सिर्फ श्री वेश्य का मामला नहीं है बल्कि सामाजिक आतंकवाद का भी मामला है / जब आतंक से लोगों कि जुबान बंद हो जाती है तो कुछ लोग भगवान के रूप में न्याय करने आते हैं / याद रखिये हमलावर अगर आपका भाई भी है तो उसके खिलाप खड़े हो जाइये ,नहीं तो वह आपके ऊपर भी हमला एक न एक दिन जरूर करेगा / हमारी इस मुहीम का मकसद सिर्फ और सिर्फ हमलावर को पकड़कर सजा दिलाना है / क्योंकि ऐसे हमलावर पूरी इंसानियत के दुश्मन हैं ,यही बात पुलिस वालों को भी समझना चाहिए और इंसानियत को अपने कर्तव्य से भी बड़ा समझना चाहिए /

सभी ब्लोगरों से हमारा आग्रह है कि आप सब भी निम्नलिखित ईमेल पर ईमेल कर इस मेसेज को भेजकर / इंसानियत के नाते इस घटना के लिए जिम्मेवार लोगों को पकड़ने के लिए अपनी-अपनी तरह से आग्रह करें -ड्राफ्ट जो ईमेल करना है वह इस प्रकार है-----

"दिनांक 13 -05 -2010 के रात्रि लगभग 08 :30 से 09 :30 बजे के बीच नरेला थाना ,दिल्ली-40 के अंतर्गत आने वाले शांति अपार्टमेन्ट ,सेक्टर-A -5 ,पॉकेट-13 के फ्लेट नंबर 117 में श्री V.R वेश्य पे जान लेवा हमला हुआ इसकी ईमानदारी से जाँच कर जल्द से जल्द दोषियों को पकड़कर सजा देने का प्रयास करें / इंसानियत और पूरी व्यवस्था के लिए शर्मनाक है कि ,आज एक हफ्ता बाद भी हमलावरों को पकड़ा नहीं गया है / श्री  वेश्य व उनके परिवार कि समुचित सुरक्षा कि भी व्यवस्था तुरंत करें /"

इसे ईमेल करने के लिए कॉपी पेस्ट कर सकते हैं /

कुछ ईमेल जिस पर ईमेल कर आपलोगों को इंसानियत के नाते आग्रह करना है -

presidentofindia@rb.nic.in        ये राष्ट्रपति जी का ईमेल है  /
pmosb@pmo.nic.in                    ये प्रधानमंत्री जी का ईमेल है /
vpindia@sansad.nic.in               ये उपराष्ट्रपति जी का ईमेल है / 
ys.dadwal@nic.in                ये दिल्ली पुलिस के कमिश्नर जी का ईमेल है / 
jtcp-crime-dl@nic.in             ये संयुक्त आयुक्त अपराध जी का ईमेल है /
dcp-northwest-dl@nic.in    ये उपायुक्त उत्तर-पश्चिम दिल्ली जी का ईमेल है / 

आशा है आप लोग इंसानियत पे हुए हमले और समाज में आतंक व भय के खिलाप हमारे इस मुहीम में जरूर हमारा साथ देंगे / सूत्रों से पता चला है कि अभी तक श्री वेश्य को FIR कि कॉपी भी नहीं दी गयी है / राम जाने ये दिल्ली कि पुलिस ने FIR दर्ज भी किया है या नहीं / अगर नहीं दर्ज किया गया है तो ,ये पूरे मानवता को शर्मसार करने वाली घटना है और इसके लिए जिम्मेवार लोगों को भी सख्त से सख्त सजा होनी चाहिए /





Friday, May 14, 2010

ब्रेकिंग न्यूज़ , बेहद शर्मनाक है ,दिल्ली कि कानून व्यवस्था -----?

आज शाम शांति अपार्टमेन्ट ,सेक्टर A -5 ,POCKET -13 ,नरेला के फ्लेट नंबर -117 में कुछ बदमाश हमलावरों ने श्री V.R. VAISH के घर में घुस कर ,उनके ऊपर हमला कर उनको बुरी तरह लहूलुहान कर दिया / श्री VAISH को पीतमपुरा के MAX अस्पताल के इमरजेंसी में भर्ती कराया गया है / अपुष्ट ख़बरों के अनुसार हमलावर चार थे /श्री VAISH काफी बृद्ध हैं और उनको कई लोग पहले से परेशान कर रहे थे ,जिसकी शिकायत उन्होंने नरेला थाने में पहले कई बार कि थी ,लेकिन पुलिस का लापरवाह और निक्कापन से भरा रवैया ,आज उनके इस हालत का जिम्मेवार है / अन्य ब्लोगर बंधुओं तथा प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मिडिया वालों के लिए हम उनका फोन नंबर यहाँ दे रहें  हैं  -09811163892 और 011 - 27787615 / हम कल जब श्री VAISH कि हालत में सुधार होगा तब इस घटना पर विस्तार से आप लोगों को तथ्यों पे आधारित जानकारी दुबारा देने कि कोशिस करेंगे / तब तक तो इतना ही कह सकते हैं कि " बेहद शर्मनाक है, दिल्ली कि कानून व्यवस्था"

Wednesday, May 12, 2010

कैसा हो न्यायिक जवाबदेही विधेयक------?


दोषी जजों को सजा देने के लिए सरकार न्यायिक जवाबदेही विधेयक पर काम कर रही है। निश्चय ही न्याय और न्याय करने वालों कि जवाबदेही तय होनी चाहिए ,क्योंकि आज देश और समाज कि जो हालत है ,उसका एक बड़ा कारण न्याय करने वालों कि जवाबदेही को पूरी तरह तय नहीं किया जाना और दोषियों को सख्त सजा नहीं दिया जाना भी है / हमारे हिसाब से एक कुकर्मी या अपराधी उस भ्रष्ट जज से कम गुनेहगार है ,जिस जज ने सुरा,सुन्दरी,पैसा और अपने निकम्मेपन से उन अपराधियों को सालों सजा होने से बचाने का काम किया है /

अब सवाल उठता है कि यह विधेयक कैसा हो जिससे न्याय ,जो कि आज भ्रष्टाचार कि वजह से देरी और फिर अन्याय में बदल जाता है ,को रोका जा सके / आज अदालतों कि कमी का रोना रोया जाता है ,लेकिन इस बात कि जाँच और विवेचना कोई नहीं करना चाहता है कि ,जिस केस का फैसला एक या दो तारीखों में हो जाना चाहिए था ,वही केस सालों और सैकड़ों तारीखों के बाबजूद भी ,फैसले का इंतजार करता रहता है / भ्रष्ट वकील ,भ्रष्ट जजों के साथ सांठ-गांठ कर गवाहों को डराने ,सबूतों को मिटाने और अपराधियों को बचाने जैसे गम्भीर कार्यों को अंजाम देते हैं ,यही नहीं ज्यादातर भ्रष्ट वकील और जज का इस देश में ठगी और सत्ता कि दलाली का भी धंधा जोरों पर चल रहा है / इन लोगों के साथ मिलकर कलयुगी बाबा और भ्रष्ट IAS और IPS भी समाज में आतंक का माहौल बनाकर भोले-भाले लोगों को डरा धमकाकर इस लोकतंत्र को शर्मसार करने का काम खुले आम कर रहें हैं /

अदालत एक ऐसी जगह है जिसके तरफ हर इमानदार,सच्चा और कानून का आदर करने वाला व्यक्ति अपनी सुरक्षा के लिए देखता है / लेकिन अगर उसी अदालत में जब किसी इमानदार,सच्चा और कानून का आदर करने वाले व्यक्ति को कानून को भ्रष्टाचार और अपराधियों के गठजोर द्वारा मसलते हुए देखने को मिलता है तो ,वह व्यक्ति कानून और न्यायालय को बेकार कि कसरत समझ कर खुद भी ,अपने तरीके से न्याय या उसकी भरपाई में लग जाता है और आज देश में यही हो रहा है /

अब क्या ऐसा किया जाय कि इस स्थिति को बदल कर न्याय और न्यायालय को एक बार फिर आम लोगों के नजर में अपराधियों के लिए खौफ और न्यायप्रिय लोगों के लिए सुरक्षा के रूप स्थापित किया जा सके ?

ऐसा हो सकता है जब सरकार इस न्यायिक जवाबदेही विधेयक को सही और ईमानदारी से तैयार कर उसमे ऐसे सख्त प्रावधान कि व्यवस्था करे कि अगर जानबूझकर किसी जज या वकील ने न्याय में देरी किया हो या न्याय को अन्याय में बदलने के लिए किसी कुकर्म जैसे  सुरा,सुन्दरी, पैसा,मकान,दुकान या किसी अन्य प्रकार से रिश्वत ली हो ,तो ऐसे वकीलों और जजों कि सेवा समाप्त कर उसपर न्याय का गला घोटने जैसे गंभीर अपराध के तहत मुकदमा चलाया जाय और इसमें सजा का प्रावधान फांसी और उम्र कैद तक हो और जिसे सख्ती से अमल में भी लाया जा सके / इस विधेयक में अगर ऐसी व्यवस्था कर दी जाय कि दो साल से ज्यादा लम्बे चल चुके मुकदमें का फैसला नहीं आने का कारण ,अगर मुकदमा करने वाले के नजर में भ्रष्टाचार और जज या वकील का निकम्मापन है तो वादी यानि मुकदमा करने वाले को जज और वकील के खिलाप न्याय में लापरवाही के तहत मुकदमा दर्ज करने का अधिकार हो / इस विधेयक में जजों को हर छः माह पर अपनी सम्पति और व्यवसाय कि जानकारी देना आवश्यक कर दिया जाय / जजों के चरित्र से सम्बंधित जानकारी भी सार्वजनिक किया जाय ,क्योंकि पारदर्शिता  लोकतंत्र  और न्याय दोनों के लिए अतिआवश्यक है /अगर किसी जज के 75% फैसले उच्च अदालतों में किसी नए सबूत के आये बिना ही पलट दिया जाय या उसे पलटने कि जरूरत परे तो उस जज को अयोग्य घोषित कर सेवा से स्वेक्षिक अवकाश दे दिया जाय / न्याय और न्यायिक व्यवस्था सिर्फ और सिर्फ इमानदार,सामाजिक सोच और कानून के प्रति सम्मान रखने वालों के हाथ में सुरक्षित रहे ,इसके लिए सरकार को आम और खास इमानदार लोगों से विचार और सुझाव मंगवाकर इस विधेयक में शामिल करना चाहिए ,जिससे सही मायने में न्यायिक जवाबदेही तय कि जा सके / न्याय में किसी भी प्रकार कि भूल और लापरवाही बेहद खतरनाक है / हम इस दिशा में कानून के जानकार ब्लोगरों से आग्रह करेंगे कि वे भी इस विधेयक को ज्यादा से ज्यादा कारगर बनाने के लिए अपने विचारों और सुझावों को ब्लॉगजगत तथा सरकार दोनों को बताने का कष्ट करें /
 

Sunday, May 9, 2010

सत्यमेव जयते डे-------?


भारत के राष्ट्रिय चिन्ह में सत्यमेव जयते लिखा है ,जिसका मतलब शायद सत्य कि हमेशा विजय होती है ,ही है / लेकिन क्या वास्तव में या जमीनी हकीकत भी यह कहती है कि सत्य कि हमेशा विजय होती है ? इस सवाल का जवाब उस व्यक्ति या उस सच्चे इमानदार समाजसेवकों से जाकर पूछिये, जिनको सत्य या सत्य का साथ देने पर क्या- क्या दुःख-तकलीफ झेलनी पड़ी है और कितनी कुर्बानियां देनी पड़ी है /

सारा सरकारी तंत्र और व्यवस्था इस सत्यमेव जयते को कब्र में पहुँचाने का पूरी निष्ठां से प्रयास कर रही है /आज अगर आपने कहिं यह कह दिया कि मैं सत्यवादी और इमानदार हूँ तो समझिये आपसे ज्यादा अयोग्य व्यक्ति कोई है ही नहीं / सत्य और सत्य पर आधारित जाँच या कार्यवाही किसी को पसंद नहीं ,तभी तो किसी भी घटना कि जाँच इमानदार लोगों को सौपने कि वजाय ,ऐसे लोगों को सौपीं जाती है ,जिनका जाँच और तथ्यों को खोजने से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं होता / झूठि जाँच के आधार पर किसी बेकसूर और असहाय को बलि का बकरा बना कर तिकरम बाज अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेते हैं और आम जनता सत्यमेव जयते के लिए तरसती रह जाती है / 

बाटला हाउस कांड हो या सामाजिक साजिश का शिकार निरुपमा का कांड / खोजी पत्रकारिता और सत्य के प्रति ज्यादातर लोगों का लगाव खत्म होने से सत्य का पता तो लग पाना अब एक सपना सा लगता है /

जरा सोचिये यह सरकार जिसका पहला कर्तव्य है कि सत्य कि खोज कर असल गुनाहगारों को सजा दिया जाय / वही बड़ी बेशर्मी से ,बाटला हाउस कांड कि न्यायिक जाँच को सिरे से नकार रही है / ऐसा करके वो ना सिर्फ सत्य का गला घोंटने का काम कर रही है ,बल्कि उन लोगों के दावों को और मजबूत बना रही है ,जिनका दावा है कि ये मुठभेर फर्जी और प्रायोजित था / सरकार का सत्य के प्रति ऐसा रवैया न्याय का भी खून करने का काम करती है ,होना तो ये चाहिए था कि सत्य के लिए और सत्य पे आधारित न्याय के लिए सरकारी खजाने का दरवाजा पूरी तरह खोल दिया जाता और सत्य कि रक्षा के लिए अलग से एक सामाजिक जाँच का भी प्रावधान कर देश के शिक्षित ,इमानदार,बुद्धिजीवियों,पत्रकारों और समाजसेवकों को भी इस कार्य के लिए सहयोग करने का आग्रह किया जाता / आज देश और समाज कि जो हालात हैं , उसमे सत्य कि रक्षा के लिए ठोस उपाय करना बहुत जरूरी है ,नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब सत्यमेव जयते को लोग झूठमेव जयते के रूप में पहचानने के लिए दिमागी तौर से तैयार हो जायेंगे /

इन सब हालात और सरकारी निकम्मापन को देखते हुए ,क्यों न हम लोग सत्यमेव जयते कि रक्षा के लिए अपने स्तर पे ह़र महीने में एक दिन "सत्यमेव जयते डे "के रूप में मनाकर ,उसे ह़र उस झूठ कि पोल खोलने के लिए इस्तेमाल करें ,जो हमारे आस-पास में सरकार या किसी असामाजिक तत्व द्वारा अपनाया गया है ,साथ ही इस दिन को हम अपने-अपने क्षेत्र में,सत्य के लिए लड़ रहे लोगों को ,एकजुट होकर तन,मन और धन से सहायता भी पहुँचाने का काम करें / मेरे ख्याल में ह़र महीने का 11 तारीख इसके लिए सबसे उपयुक्त रहेगा / जो भी हो ,सत्यमेव जयते कि रक्षा हम सब को मिलकर ही करना होगा ,क्योंकि सरकार तो इसकी रक्षा करने से रही / इसके लिए आज ही सोचिये और अपने क्षेत्र के लोगों को एकजुट करिये,आपका प्रयास ही सत्य और आपको बचा सकता  है /   

Friday, May 7, 2010

मार डालो इस डर को ? नहीं तो ये मार डालेगा आपको--------



आज मैं इस बात पर चर्चा करने जा रहा हूँ कि ,हमारे देश और समाज कि इस दर्दनाक अवस्था के लिए कौन सा तत्व जिम्मेवार है ?

मैंने जब गंभीरता से आज कि परिस्थितियों में लोगों के अन्याय के खिलाप आवाज को यथा संभव ताकत प्रदान करने और अपने अनुभवों तथा अपने शुभ चिंतकों से विचार विमर्श के आधार पर इस सवाल का हल ढूंढा तो पाया कि ,लोगों के अन्दर जो मृत्यु और झूठे अपमान का डर है ,यही इस देश और समाज को नरक कि ओर ले जाने वालों को ताकत प्रदान कर रहा है /

लोग अपने जान कि परवाह किये वगैर जिस दिन अन्याय,भ्रष्टाचार और इस देश को सत्ता कि उचाईयों पर बैठकर इस देश व समाज को लूटने और गरीबों कि रोटी खाने वालों के खिलाप लड़ने लगेंगे ,उस दिन से इस देश और समाज का काया पलटना शुरू हो जायेगा और ये सारे गिदर टायप लूटेरे दुम दबाकर भाग खड़े होंगे /
इसलिए मैंने तो मार दिया है इस डर को और आपसे भी आग्रह कर रहा हूँ कि "मार डालो इस डर को नहीं तो ,ये मार डालेगा आपको "-------

Thursday, May 6, 2010

ब्लोगर बतायें कि ,इस देश में न्याय कैसे जिन्दा रह सकता है ------?


हमारे द्वारा पिछले दिनों दिल्ली के आतंकवादी Resident Welfare Association के जमीनी हकीकत को जानने के अभियान में ऐसे-ऐसे मानवीय यातना और प्रतारणा के उदाहरण मिले,वो भी सिर्फ नाजायज तरीके से लगाये गए माशिक शुल्क को उसूलने के लिए / इन तरीकों और उसके खिलाप उठे आवाज को दबाने के आतंकी तरीको के बारे में जानकर हमारे जेहन में एक ही सवाल आया कि, क्या दिल्ली में सरकार और न्याय का शासन है ? कम से कम हमारे हिसाब से तो नहीं है और न्याय कि दशा बेहद खराब है /

हमने पाया कि इन Association के बेहद शातिर और असामाजिक किस्म के पदाधिकारी इन Association को समाज कल्याण कि जगह, एक व्यवसाय के रूप में प्रयोग कर रहें हैं और इमानदार और न्यायप्रिय लोगों का जीना इन्होने हराम कर रखा है / ये खुलेआम कहते घूमतें हैं कि ,हम नहीं मानते किसी कानून को यहाँ तो हमारा कानून है और वो ही चलेगा ? इन दुष्ट लोगों ने निवासियों कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति को पूरी तरह बंधक बना कर रखा हुआ है / दिल्ली के मुख्यमंत्री ,उपराज्यपाल और दिल्ली पुलिस के मुखिया को इस ओर गंभीरता से सोचना होगा /

ऐसा नहीं है कि इनके आतंक और अमानवीय प्रतारणा कि लोग शिकायत नहीं करते हैं / अगर दिल्ली के थानों में लिखित शिकायतों के रिकॉर्ड को जांचा जाय तो लगभग ह़र थाने में इनकी शिकायत जरूर पाई जाएगी / 

अब सवाल उठता है कि फिर न्याय क्यों नहीं होता ? इस विषय पर जब हमने लोगों से बात कि तो इसके पीछे लोगों में व्यवस्था और न्याय के प्रति अविश्वास तथा इन गुंडा टायप पदाधिकारियों के आतंक का हाथ होने कि बात सामने आई / लोगों ने बताया कि इनके खिलाप एक तो इनके आतंक से कोई शिकायत ही नहीं करता ,लेकिन अगर कोई हिम्मतवाला आगे आकर शिकायत करता है तो, ये वहाँ रह रहे निवासियों से हस्ताक्षर कराकर ,यह जवाब पुलिस या प्रशासन में दाखिल कर देते हैं कि "हमारे Association में किसी तरह का आतंक या अनियमितता नहीं है ,और हमने किसी को भी प्रतारित या उसका रास्ता रोककर या गाली गलौज कर मासिक सुरक्षा खर्च नहीं उसूला है" ऐसा लिखकर दे देने से ये लोग प्रशासन से बच जाते हैं और फिर ये लोग उस व्यक्ति कि फिर से प्रतारणा शुरू कर देते हैं ,जो व्यक्ति इनके धमकी या अनियमितताओं के चलते इनको मासिक शुल्क नहीं देता है / हस्ताक्षर ज्यादातर लोग इनके कुकर्मों को जानते हुए भी इनके आतंक से डरकर ,कर देते है / ज्यादातर लोग डरकर अपराधियों के खिलाप बयान नहीं दे पाते हैं /

अब सवाल यह है कि लोग इनके झूठे दावों पर दस्तखत क्यों कर देते हैं / इस मुद्दे पर लोगों का कहना था कि ये मानसिक रूप से लोगों को तोरने का काम करते हैं ,जो बड़ा ही असहनीय होता है / ऐसे में हमें यहाँ रहना है तो इनके ह़र बात को मानना ही परेगा क्योंकि ये इस तरह से प्रतारित करते है कि उसका सबूत जमा करना बड़ा ही मुश्किल है और फिर न्याय व प्रशासन भी इससे कहिं न कहिं भ्रष्टाचार कि वजह से जुड़े होने के कारण इनकी ही मदद करता है / शर्मनाक है ,यह पूरे देश कि व्यवस्था के लिए और दिल्ली में बैठे प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपति के लिए भी /

अब जब हमने लोगों से पूछा कि आखिर इनको सजा और पीड़ित को न्याय कैसे मिल सकता है ,तो लोगों का कहना था कि अगर कोई निवासी मानसिक प्रतारणा और आतंकित करने कि शिकायत करता है तो ,तुरंत अगर पीड़ित और आरोपी पदाधिकारियों का शिकायत के आधार पर पुलिस और इमानदार समाज सेवकों के सामने ब्रेन्मेपिंग और लाई डिटेक्टर टेस्ट करा कर तथ्यों को खोज न्याय किया जाय तो इन पदाधिकारियों का पूरा आतंक का खेल समाप्त हो सकता है साथ ही ये जिन-जिन असामाजिक तत्वों से जुड़े हैं या उनका प्रयोग कर लोगों को आतंकित करते हैं ,उनको भी पकड़ा जा सकता है / इससे दिल्ली के कानून व्यवस्था में भी सार्थक सुधार हो सकता है /

कितना दुःख से भर गया है ,इमानदार,न्यायप्रिय,सच्चे और अन्याय के खिलाप आवाज उठाने वालों का जीवन / कितने शातिर हो गये हैं ,अपराधी,समाज के ठेकेदार Association के पदाधिकारी और असामाजिक तत्व / क्या ऐसे हालात में न्याय को जिन्दा रखा जा सकता है ? अगर हाँ तो कृपा कर अपने विचार और सुझाव जरूर बताएं /  

Wednesday, May 5, 2010

क्या हम ब्लोगर रद्दी कि टोकरी भर बनकर रह जायेंगे -----?


एक समय था कि विश्व कि महाशक्तियां अमेरिका ,चीन,रूस ,फ़्रांस और ब्रिटेन विश्व के किसी अन्य देशों द्वारा बनाये गए किसी भी संगठन को और उससे उठे किसी भी सार्थक आवाज को रद्दी कि पोटली से उठे आवाज कि तरह कोई तवज्जो नहीं देती थी /

आज परिस्थितियाँ ऐसी बदली है कि ये सभी देश ,अपने देश के लोगों का पेट भरने और उनको आर्थिक बदहाली से निकालने के लिए, इन रद्दी कि पोटली कहे जाने वाले देशों  के साथ ,न जाने कैसे-कैसे व्यापारिक व अन्य समझौतों को करने के लिए आगे आकर आग्रह कर रही है / हलांकि इसके बाबजूद उनके तिकरम और खतरनाक मंसूबों में कोई सार्थक बदलाव नहीं आया है और इन देशों में भ्रष्टाचार और सरकार में उच्च पदों पर बैठे लोगों में भ्रष्ट लोगों कि अधिकता ,उनके इन इरादों को कामयाब बनाने में मदद भी पहुंचा रही है /

ठीक उसी तरह ब्लोगरों द्वारा उठाया गया कोई भी सार्थक विचार और मुद्दों को सरकार और सरकार में बैठे बेशर्म और भ्रष्ट लोग रद्दी कि टोकरी से उठे आवाज कि तरह समझती है और किसी तरह कि तवज्जो देना जरूरी नहीं समझती है /


ब्लोगरों द्वारा तथ्यों और सच्ची सोच से मेहनत से जुटाई गयी बेहद अहम् सबूत भी ,उसके बेशर्मी को थोरी बहुत शर्म में भी ,नहीं बदल पा रही है /

अब सवाल उठता है कि क्या हम ब्लोगर इसी तरह अपनी लेखनी के जरिये चीखते-चिल्लाते हुए कुछ सार्थक टिप्पणियों के बाबजूद इस व्यवस्था के लिए रद्दी कि टोकरी ही बने रहेंगे ? निश्चय ही यह बेहद गम्भीर प्रश्न है जिस पर हम सभी ब्लोगरों को मिलकर सोचना होगा ,जिससे ब्लॉग कि सशक्तता और महत्ता दोनों को बढाकर उसके प्रभाव को देश और समाज में सार्थक बदलाव से जोड़ना होगा / ऐसा करने के बाद ही हम ब्लॉग और ब्लोगरों को किसी भी व्यवस्था द्वारा रद्दी कि टोकरी समझने कि मानसिकता को बदल पायेंगे /
ऐसा मुश्किल तो है लेकिन अगर हम ब्लोगर किसी अच्छे उद्देश्य के लिए अपने-अपने मतभेद को भूला कर एकजुट हो जायें तो यह काम ना मुमकिन नहीं रहेगा /

इसके लिए मैं देश-व्यापी अभियान कि रूप रेखा तैयार कर रहा हूँ और मैं चाहता हूँ कि सभी ब्लोगर चाहे वो देश में रह रहें हो या विदेश में वो इस दिशा में सोचें और आगे आयें / क्योंकि एकता कि ताकत से ही किसी अच्छे उद्देश्य कि प्राप्ति संभव है / पूरे देश में ब्लोगरों कि संख्या बढ़ाकर और उसे खोजी पत्रकारिता के लिए साधन,संसाधन और सुरक्षा मुहैया कराकर ब्लॉग को एक ऐसे ताकत के दवाब समूह का रूप दिया जा सकता है ,जिसकी ह़र न्यायसंगत और तर्कसंगत आवाज को मानना इस देश कि सरकार या इस देश के किसी भी राज्य के सरकार के लिए जरूरी हो जायेगा / हम सब मिलकर इसके सामाजिक,आर्थिक और कानूनी आधार को इतनी मजबूती प्रदान कर सकते हैं कि ,लोग ब्लॉग कि तरफ आकर्षित हुए और उसके साथ जुड़कर काम करने के लिए स्वतः ही प्रेरित होने लगेंगे /
आप सभी ब्लोगर बंधुओं से आग्रह है कि अगर आप अपने-अपने क्षेत्र में ब्लॉग और ब्लोगिंग के विकाश के लिए कुछ करने कि चाह रखते है या ऐसे किसी प्रयास को सामूहिक सहयोग के नहीं मिलने कि वजह से अमल में नहीं ला पा रहें हैं या आप इस विषय पर कुछ सार्थक सुझाव और विचार को रखना चाहते हैं तो ,इस पोस्ट पर टिप्पणी के रूप में दर्ज करें या हमें इ,मेल honestyprojectdemocracy@gmail .com पर करके बताएं या हमारे मोबाइल -09810752301 पर संपर्क करें / अपने-अपने क्षेत्र में आपके सार्थक प्रयास और थोरी मेहनत से ही इस देश और समाज को ब्लॉग के जरिये ,सही राह कि ओर मोड़ा जा सकता है / इसके लिए आपका प्रयास,सामूहिक सहयोग ,सुझाव  और सोच महत्वपूर्ण है / आपके विचारों का इंतजार रहेगा /
 

Sunday, May 2, 2010

रोमांचित करता हुआ ब्लोगरों का ये आक्रोश,हतासा और सहयोग के बढे हाथ ------आप भी पढ़िए !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!



आज मैं ,आप सभी ब्लोगरों के सामने ,ब्लॉग जगत के धुरंधर ब्लोगरों के टिप्पणियों में छुपी उनका आक्रोश, हतासा और सहयोग के बढे हाथ कि चर्चा ,इस पोस्ट के जरिये कर रहा हूँ ,जो मेरे ख्याल से ब्लॉग के जरिये इस देश में सार्थक बदलाव लाने कि दिशा में शुभ संकेत है / मुझे यह प्रस्तुत करते हुए अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है / आपलोगों का अनुभव जानना चाहूँगा ?  
ये विचार दो हफ्ते में मेरे आग्रह पर ब्लोगरों ने मेरे एक पोस्ट पर व्यक्त किया है / पिछले हफ्ते अजित गुप्ता जी उम्दा विचार के लिए सम्मानित कि गयी थी / इस हफ्ते अदा जी को यह सम्मान दिया जा रहा है / वैसे सम्मान के हक़दार तो वे  सभी ब्लोगर है जो देश और समाज में बदलाव लाने कि सोच रहें हैं /अदा जी को बधाई ,साथ ही आग्रह है कि ,आप हमे अपना डाक का पता और संभव हो तो मोबाइल नंबर मुझे इ मेल या मेरे मोबाइल पर फोन कर मुझे बताने का कष्ट करें ,जिससे हम आपको सम्मान पत्र और इनाम का चेक भेज सकें / मेरा मोबाइल नंबर और इ मेल मेरे ब्लॉग से आपको मिल जायेगा /


हमने देश हित में विचारों और सुझावों के लिए एक मुहीम चलाया हुआ है ,जिसमे उम्दा विचारों और सुझावों को सम्मानित करने क़ी भी व्यवस्था है /


आप सबसे आग्रह है क़ी आप अपना बहुमूल्य विचार पोस्ट में उठाये गए मुद्दे के पक्ष,बिपक्ष या उस उद्देश से जुड़े अन्य बिकल्पों पर सार्थक विवेचना के रूप में अपना 100 शब्द जरूर लिखें / नीचे लिखे लिंक पर क्लिक करने से,वह पोस्ट खुल जायेगा जिसके टिप्पणी बॉक्स में आपको टिप्पणी करनी है /




Suman said...
nice



Udan Tashtari said...
विचारणीय- गंभीरता से मनन करने योग्य. विचार करके पुनः आते हैं.



Bhavesh (भावेश ) said...
अच्छा प्रारूप. लेकिन अफ़सोस अपने देश में गुंडे छाप नेताओ के रहते इसे अमल लाना संभव नहीं है. मेरे विचार से १. केवल प्रश्न पूछने से ही अपने कर्त्तव्य की इतिश्री नहीं हो जाती. प्रश्नकर्ता और उत्तर देने वालो की जवाबदेही भी बहुत जरुरी है. २. मुफ्त रेल पास इत्यादि का भी कोई खास औचित्य नहीं है क्योंकि मुफ्त में मिलने वाली चीजों से ही व्यक्ति भ्रष्ट होता है और मुफ्त की चीज़ ही सबसे महँगी होती है.



honesty project democracy said...
BHAVESH JI SOCH WICHAR KAR AASANKA JAHIR KARNE KE LIYE DHANYWAD.YHAN MAIN AAPKI AASHANKA DUR KARNE KE LIYE ITNA HI KAHUNGA KI "JAB SARE DESH KE DESH BHAKT EK JUT HO JAYEN,TO EK LAKH DESH BHAKT BHI IS DESH KE SARE GUNDA TYPE NETAON AUR UNKE CHMCHON PAR BHARI PARENGE"



गिरीश बिल्लोरे said...
सहमत हूं



प्रवीण पाण्डेय said...
बहुत अच्छा विचार है ।



ajit gupta said...
जब देश में राजशाही थी तो यह अनुभव किया गया कि लोकतंत्र आना चाहिए। स्‍वतंत्रता के बाद भारत में लोकतंत्र आ गया अर्थात नौकरशाहों के ऊपर जन-प्रतिनिधि बैठ गया। लेकिन धीरे-धीरे यह जन-प्रतिनिधि जिसे आज गाली के रूप में नेता का प्रयोग करते हैं, ही सर्वाधिक भ्रष्‍ट हो गया। नौकरशाहों और नेताओं के भ्रष्‍टाचार से त्रस्‍त जनता के सामने मीडिया आया। अब मीडिया ही सर्वाधिक भ्रष्‍ट हो चला है। इसलिए इस देश में समाज को सुधारने की आवश्‍यकता है। केवल प्रश्‍न पूछ लेने से काम नहीं चलेगा। इसके लिए जैसा आपने एक लम्‍बी-चौड़ी प्रक्रिया बता दी, तो एक एजेन्‍सी खोलनी पड़ेगी और फिर नवीन भ्रष्‍टाचार। भारत में जब तक लोकपाल विधेयक को मंजूरी नहीं मिलती तब तक इस देश का भ्रष्‍टाचार समाप्‍त नहीं हो सकता। आज भी हमारे देश में अंग्रेजों का ही कानून लागू है, उसके तहत सारे ही राजनेता, नौकरशाह कानून से ऊपर हैं। उन्‍हें सीधे ही सजा नहीं हो सकती। इसलिए अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि लोकपाल विधेयक में प्रधान मंत्री को भी लेना चाहिए और अब्‍दुल कलाम ने तो कहा था कि उसके घेरे में राष्‍ट्रपति भी आना चाहिए। लेकिन यह बिल कभी भी पास होने की स्थिति में नहीं आता। इसलिए कुछ मूलभूत मुद्दों पर परिवर्तन हो जाए तो देश का कायाकल्‍प हो सकता है लेकिन इसके लिए ना तो नौकरशाह फाइल को आगे बढ़ाने देंगे और ना ही राजनेता उस पर अमल करेगे। केवल जनता ही दवाब बना सकती है।



Amit Sharma said...
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Tarkeshwar Giri said...
Bahut accha lekh hai. Main aapke sath hun.



Tarkeshwar Giri said...
दुध की सफेदी काली पड़ने लगी है। क्योंकि दिन प्रतिदिन दुध के दामो मैं उछाल आ रहा है। दुध है की पानी -पानी होता जा रहा है और लोग कमा -कमा के काले हुए जा रहे हैं। अब लोग करे भी तो क्या करे । बिना दुध के काम भी तो नहीं चलने वाला है। सुबह उठते ही घर के बड़े चाय और बच्चे दुध की मांग शुरू कर देते हैं। दुध बेचने वाली कंपनिया मोटी काट रही है। क्योंकि उन्हें पता है की बिना दुध के काम तो चलने वाला नहीं है। सरकार अपने आप में मस्त है उसे अभी फ़िलहाल कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। क्योंकि वो पूरी तरह से बहुमत में है। और चुनाव अभी बहुत दूर है। आखिर चुनाव के लिए चंदा तो येही कंपनिया ही देंगी ना। आखिर विरोध करे तो करे कौन। शायद हम और आप मिल कर के इसका विरोध कर सकते हैं। सड़क पर खड़े हो कर के नारे लगाने की कोई जरुरत नहीं है और न ही कोई नई पार्टी बनाने की जरुरत है। इसका विरोध तो हम अपने -अपने घरो में बैठ कर के ही कर सकते हैं। बस करना ये ही है की हमें हफ्ते में किसी भी एक दिन दुध का घर बैठे बहिष्कार करना होगा। उस दिन कोई भी चाय या कोफ़ी नहीं पिएगा। बच्चो को उस दिन दुध की जगह ताजे फलो का रस पिलाना होगा। फिर देखिये कैसे दुध बेचने वाली कंपनियों की आँखे खुलती है। अगर हमने मिलकर के सिर्फ हफ्ते में एक दिन दुध का बहिष्कार कर दिया तो इन कंपनियों की ऐसी की तैसी हो जाएगी। और अब करना पड़ेगा। अगर आप सभी लोग चाहते हैं की महंगाई रुके तो।



देव कुमार झा said...
विचार आन्दोलित करते हैं... कुछ करने का आदेश देते हैं...



अजय कुमार झा said...
मुझे लगता है कि ये मुद्दा इतना सहज नहीं है इसलिए इस पर अपे्क्षित टीप , योजना के लिए एक रूप रेखा और बहुत सी विस्तृत बातें हैं कहने वाली अलग से टिप्पणी करने आता हूं ।



Aseem Trivedi said...
अच्छा विचार है, सूचना के अधिकार कि तरह ही हमारे लोकतंत्र के विकास में मील का पत्थर साबित हो सकता है. इस तरह के तरीके निकालने कि आवश्यकता इसीलिये पड़ती है क्योकि हम अच्छे प्रतिनिधि नहीं चुन पाते. पता नहीं हम इतने सक्षम कब होंगे कि धर्म, जाती, संप्रदाय से ऊपर उठ कर चुनाव कर सकें. पता नहीं कब पढ़े लिखे लोग कब राजनीती कि और रुख करेंगे और कब तक हमें कदम कदम पर अपने अधिकार मांगने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा. इस दिशा में इतना सोचने और एक रास्ता निकालने के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद....! आशा है कि इस दिशा में आगे प्रयास हो सकेगा.



काजल कुमार Kajal Kumar said...
आइडिया तो अच्छा है पर बिल्ली के गले में घंटी बांधेगा कौन



honesty project democracy said...
काजल कुमार जी आप अपने बहुमूल्य विचार और सुझाव तो रखिये १०० शब्दों में ,फिर हम सब मिलकर जैसे देश को आजादी दिलाये थे , उसी तरह बिल्ली के गले में घंटी भी बांध देंगे और इन भ्रष्टाचारियों से देश को मुक्ति भी दिला देंगे / बस जरूरत है मतभेद भुलाकर एकजुट होने की /



रेखा श्रीवास्तव said...
प्रजातंत्र में जनता कि सरकार जनता के लिए कही जाती है किन्तु हम तो हर बार ठगे जाते हैं. ये जानकर भी ये हमारे जनप्रतिनिधि दुबारा नहीं नजर आनेवाले . संसद में सिर्फ महीने कम हैं ये दो महीने साल में मांग रहे हैं या फिर पूरे संसद के कार्यकाल में. संसद में हर सत्र में कुछ दिन होने चाहिए जिसमें जनता सीधे सवाल पूछ सके. उसका माध्यम जो भी रखा जाए. अब इस प्रजातंत्र के वर्त्तमान स्वरूप में ये आवश्यक हो गया है कि निरंकुश सांसदों को पांच साल के लिए ये लाइसेंस न दे दिया जाय. अगर चुना गया प्रतिनिधि अपनी जनता का प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ है तो जनता को सामने आने का अधिकार भी होना चाहिए क्योंकि कितने सांसद तो सिर्फ नाममात्र के सांसद होते हैं. १८ वर्ष के मतदाताओं के लिए ये चुनाव क्या अर्थ रखता है? अगर फ़िल्म अभिनेता सामने है तो उसे उसका ग्लैमर दिखाई देता है और वह चुन कर आ भी जाता है. फिर वह सिनेमा और संसद के बीच न्याय नहीं कर पाता है. कुछ को तो सम्पूर्ण कार्य काल में भी एक भी प्रश्न पूछने या फिर अपने क्षेत्र कि समस्या को प्रस्तुत करने की आवश्यकता ही महसूस नहीं होती है. अब संसद में जनता कि भागीदारी इस रूप में अत्यंत आवश्यक हो चुकी है. इस तरह से जनता की प्रश्न प्रहार में साझीदारी न सिर्फ सरकार में विश्वास को बढ़ाएगी बल्कि ये जनप्रतिनिधि निरंकुश बादशाह होने के अहसास से भी मुक्त हो सकेंगे. चुनाव में मतदान के प्रति जो निराशा और उदासीनता आज एक बड़े तबके में है , उसका शमन हो सकता है और फिर प्रतिनिधि का चुनाव पार्टी के नाम पर नहीं बल्कि उसके अपने व्यक्तित्व और कृतित्व के अनुसार ही होगा.



विजय प्रकाश सिंह said...
भ्रष्टाचार का विषय बहुत ही व्यापक है , यह नया भी नहीं है । आचार्य चाणक्य से लेकर अलाउद्दीन खिलज़ी , फ़िरोज़ शाह ने लेकर राबर्ट क्लाइव और जवाहर लाल नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक भ्रष्टाचार के किस्से भरे पड़े हैं । क्राइम फ़ॉर पैशन और क्राम फ़ॉर मनी ही मुख्य अपराध होते हैं । इस विषय पर बहुत विस्तृत पोस्ट फिर कभी लिखेंगे । धन्यवाद ।



boletobindas said...
दशा सही में विचारनीय है देश की..देश की राजधानी में जब स्थिती खराब है तो बाकी जगह के बारे में बात करना बेमानी है। हर व्यक्ति जहां सत्ता में है, नौकरी में है, वहीं पर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने पर जुटा है। पर सिर्फ सवाल पूछने से कुछ नहीं होगा। जनता को दवाब बनाना ही होगा, तभी कुछ हो पाएगा। आज देश की राजधानी के अस्पतालों में, शिक्षण संस्थानों में आसपास दूर दराज के लोग आते है. क्योंकी वहां स्वास्थ्य औऱ शिक्षा की सुविधा उपलब्ध नहीं है। सवाल पूछने के लिए दिल्ली आने की कोई जरुरत नहीं है। सभी सांसदों को अपने ही इलाके में सवाल का जवाब देने की व्यवस्था करनी होनी चाहिए। बीमार पड़ने पर अपने ही जिले के स्वास्थ्य केंद्रों पर नेताओं को इलाज करना चाहिए। ताकि उन्हें पता चले की वहां के हालात कैसे है। उनके बच्चे प्राइवेट स्कूलों में क्यों पढ़ते हैं, क्योंकी सरकारी स्कूल की स्थिति बिगाड़ी हूई है नेताओं ने। हर नागरिक को जबतक अपने ही इलाके में मूलभूत सुविधाएं नहीं मिलती तब तक कुछ नहीं हो सकता। हर काम के लिए दिल्ली भागने की आदत नहीं होनी चाहिए। सवाल पूछने के लिए अगर दिल्ली आना पड़े तो क्या फायदा। नेता जब वोट मांगने दरवाजे पर आते हैं. तो वोटर को अपने प्रशन का उत्तर भी अपने घर पर न सही, अपने इलाके में मिलना ही चाहिए। ठीक है कि भ्रष्टाचार को खत्म नहीं किया जा सकता पर उस पर प्रभावी अंकुश लगाया जा सकता है, ताकी उसकी मार से जनता त्राही त्राही न करे। यही स्थिती हर क्षेत्र में लायी जा सकती है।



Vishal Kashyap said...
काफी विचाराधीन समस्या और गंभीर सोंच, काश इस सोंच को यथार्थ मिले .........



संजय कुमार चौरसिया said...
aaj ek aam insan kathputali ban ke rah gaya hai, jab hum doosron ke isaare par nachna band kar denge, tabhi yah andolan aage badega, badiya prastuti ke sath ek sandesh jis par hum sabhi ko amal karna chahiye aapko dhnyvad



BrijmohanShrivastava said...
जनता के प्रश्न स्वम जनता पूछेगी तो प्रश्न पूछने के जो पैसे लिए जाते है वे किसको मिलेंगे |सर जी मेरा तो कहना यह है की "अपने माहोल पे इल्जाम लगते क्यों हो ?तुमने खुद राह्जनों को नए चहरे बख्शे अब लुटे हो तो लुटो शोर मचाते क्यों हो | बुलबुलें खुश थी खुशियों के तराने गाये ,लेके खारों से achchhon को चमन सौंप दिया ,शीश dhuntee है अब फूलों kee ye ghaayal khushboo, ye तुमने kyaa kiyaa ye kisko चमन सौंप दिया



जी.के. अवधिया said...
"प्रश्न काल के लिए साल में दो महीने आरक्षित होना चाहिए, जिसमे सिर्फ जनता को मंत्रियों और अपने जनप्रतिनिधियों से प्रश्न पूछने का अधिकार होगा और संसद के सभापति जनता के प्रश्न काल को संचालित करेंगे ..." भ्रष्टाचारी लोग इसमें भी भ्रष्टाचार का रास्ता निकाल लेंगे। देश में व्याप्त भ्रष्टाचार की जड़ तो वास्तव में हमारी कुशिक्षा है। देश के स्वतन्त्र हो जाने के बाद भी हमारी अपनी कोई शिक्षानीति नहीं बनी और हम आज तक अंग्रेजों की बनाई शिक्षनीति, जिसका उद्देश्य ही भ्रष्टाचार को बढ़ा कर भारत को लूटना था, को ही कुछ फेरबदल के साथ अपनाये हुए हैं। जरूरत है तो हमारी अपनी शिक्षानीति को जो अपनी संस्कृति, सभ्यता और राष्ट्र के प्रति समर्पण सिखाये। शिक्षा से ही संस्कार बनते हैं और संस्कार से विचार जो कि हमसे कर्म करवाते हैं। आज हम भ्रष्टाचार जैसे कर्म कर रहे हैं तो सिर्फ कुशिक्षा के कारण ही। अन्त में इतना अवश्य कहूँगा कि लोगों में जागरूकता बढ़ाने का आपका कार्य अत्यन्त सराहनीय है।



जगदीश्‍वर चतुर्वेदी said...
समस्या समय आवंटन की नहीं है,समस्या प्रश्नकाल और अन्य मौकों पर उठे सवालों पर सरकारी कार्यान्वयन की है। केन्द्र सरकार की इस मसले पर भूमिका जनविरोधी रही है।



विष्णु बैरागी said...
चरम आदर्शवादिता भरी, चरम आक्रोशवाली पोस्‍ट। भावना अच्‍छी है किन्‍तु आक्रोश, विवेक को विस्‍थापित कर देता है। हम लोग 'जनता' या 'प्रजा' ही बने रहना चाहते हैं, 'नागरिक' नहीं बनना चाहते। 'नागरिक' बनने पर लोकतन्‍त्र में भागीदारी निभानी पडती है, कुछ लोगों की नाराजी मोल लेनी पडती है। उसके लिए हममें से कोई भी तैयार नहीं। हम बिना कुछ खोए सब कुछ हासिल करना चाहते हैं। परिणामस्‍वरूप हमें कुछ भी हासिल नहीं हो रहा है और चीजें एक के बाद एक, हमारी मुट्ठी से निकलती जा रही हैं। देश को इस मुकाम पर हम ही लाए हैं, यह अपने आप यहॉं नहीं पहुँचा। हम अपने नेताओं को नियन्त्रित करने को तैयार नहीं। उन्‍हें खुली छूट देकर उनसे अपनी स्‍वार्थ सिघ्दि की प्रत्‍येक गुंजाइश कायम रख्‍ना चाहते हैं। सब कुछ सम्‍भव है यदि हम तय कर लें, दूसरे के कुछ करने की प्रतीक्षा छोड कर खुद करने में लग जाऍं, कुछ खोने को तैयार हो जाऍं और लोकतन्‍त्र को अधिकार ही नहीं, जिम्‍मेदारी भी मानना शुरु कर दें। कामयाबियॉं हमारे कदम चूमने को बेकरार हैं, हम ही कदम बढाने को तैयार नहीं।



आनन्‍द पाण्‍डेय said...
मेरे विचार से इतना कुछ करने की आवश्‍यकता ही नहीं पडेगी अगर मात्र कुछ नियम लगा दिये जाएं । पहले तो सभी नेताओं की सैलरी सामान्‍य कर्मचारियों जितनी ही हो और किसी भी नेता चाहे वह प्रधानमंत्री ही क्‍यूं न हो की अधिकतम् सम्‍पत्ति 10 लाख से अधिक होने पर उन्‍हे अपदस्‍थ करके उनकी सारी सम्‍पत्ति राजकोष में जमा कर दिया जाए। दूसरी बात- सभी नेताओं के ऐशोआराम की व्‍यवस्‍था बिलकुल ही सामान्‍य जनता की तरह हो। क्‍यूकि गद्दी उन्‍हे जनता की सेवा के लिये मिलती है सो सच्‍चे सेवक के पूरे लक्षण हों। उन्‍हे भी सामान्‍य गड्ढे वाले सडकों पर विना ए सी वाली गाडी से ही क्षेत्रों का दौरा अनिवार्य हो तब जाकर वो सडकों और अन्‍य अव्‍यवस्‍‍थाओं की तरफ ध्‍यान देंगे। चुनाव लडने की न्‍यूनतम योग्‍यता स्‍नातक हो तथा चुनाव का आवेदन देने के बाद उन्‍हें भी सिविल आदि की तरह परीक्षाएं देनी पडें, इससे शाशन की बागडोर योग्‍य व्‍यक्ति के हाथ आएगी। चुनाव लडने वाले पर कोई भी अपराधिक मामला दर्ज न हो और इसकी पुष्टि उसके लोकल थाने से की जाए। चुनाव लडने वाला व्‍यक्ति चुनावी गतिविधि के लिये राजकोष का पैसा न लगा सके और एक निश्चित राशि तक ही खर्च कर सके। जनता को ये अधिकार हो कि जब चाहे वो सर्वकार से जबाब तलब कर सके फिर चाहे किसी भी संचार माध्‍यम से क्‍यूं नहो। कोई भी नेता किसी भी निर्माण कार्य के पहले पूरी जनता से एस एम एस ओटिंग कराये कि जनता की उसपर राय क्‍या है, और यह ओटिंग फ्री हो। इस तरह से और भी बहुत सी बातें लागू करनी होंगी पर सबसे पहले अगर ये उपरोक्‍त नियम लागू हो गये तो नेताई में गुण्‍डागर्दी तो शर्तिया कम हो जायेगी।



lokendra singh rajput said...
लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि होती है... और हम जो भी विकास करना चाहते है उसके मूल में जनता ही तो है... सो जनता को सवाल उठाने का पूरा हक है... बेहतर बात उठाई है, ये होना ही चाहिए.... और इसके लिए हमे मिल का प्रयास करने होंगे....



'अदा' said...
मुझे इस बात की बहुत ज्यादा कोफ़्त होती है, जब बिना प्रयास किये हुए यह मान लिया जाता है कि यह काम तो हो ही नहीं सकता है.... आपका यह प्रश्न " क्या आप समझते हैं कि जनता को सरकार को संयुक्त हस्ताक्षर अभियान के जरिए,आदेश देने का अधिकार है?" बिलकुल हो सकता है और होना भी चाहिए....लोकतंत्र का अर्थ ही है जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा.....लेकिन जब जनता को ही अपनी शक्ति का भान नहीं है तो कोई क्या करे...मुट्ठी भर भ्रष्ट नेताओं की दुहाई देने वाले या तो डरपोक है या निकम्मे, जब समाज को बदलना है तो भिड़ जाना ही होगा, अगर हम सोच लें तो क्या यह संभव नहीं है....गाँधी जी सत्याग्रह के बल पर अंग्रेजी हुकूमत को घुटने पर ले आये थे और हम गाँधी के देश में अपने ही लोगों की गुंडागर्दी से डर कर बैठे हुए हैं...आज पोलिटिक्स मात्र गुंडों का खेल होकर रह गया है...और इसके लिए जिम्मेवार हमारा तथाकथित माध्यम वर्गीय समाज है.... हमने हमेशा समस्याओं से बचके निकलना सीखा है...और बाद में वही समस्याएं विकराल रूप ले लेतीं है...फिर हम आराम से कहते हैं कि अब कुछ नहीं हो सकता है....वही हाल राजनीति का रहा है....राजनीति में जाना बुरी बात है....राजनीति बुरे लोगों का काम है, भले लोग राजनीति में नहीं जाते हैं ....यही तो सुनते रहे हैं बचपन से, और हमेशा हैरानी होती रही है मुझे कि , देश के किये काम करना कैसे बुरा हो सकता है ? हमारे बड़े बुजुर्गों ने सिर्फ मुसीबतों से बचने के लिए गलत छवि बना दी और हमने यकीन कर लिया....और यही सबसे बड़ा कारण है कि आज पोलिटिक्स में गुंडों का आधिपत्य है, हमलोग ये क्यूँ नहीं सोचते राजनीति भी एक करियर है...बच्चों को उसमें भी जाना चाहिए....हर नौकरी कि तरह यह भी एक नौकरी है...इसके लिए भी पाठ्क्रम होने चाहिए....नयी पीढ़ी को ट्रेनिंग मिलनी चाहिए....कितनी अजीब बात है एक पार्क तो खूबसूरत बनाने की ट्रेनिंग है,, बिल्डिंग को सजाने की ट्रेनिंग है ....और अपने देश को व्यवस्थित करने की कोई ट्रेंनिग नहीं ....लानत है जी... हमारे अपने लोग कितनी बड़ी-बड़ी अन्तराष्ट्रीय कंपनियों में अपने बुद्धि-विवेक से अपना आधिपत्य साबित कर चुके हैं....क्या वो लोग अपने देश में इस काबिल नहीं थे....?? जब हम अपने देश के विदेश मंत्रालयों के प्रवक्ताओं के देखते हैं और सुनते हैं तो आत्महत्या कर लेने का दिल करता है...लगभग २ अरब आबादी वाले देश में एक ढंग का प्रवक्ता नहीं मिलता इनको जो अपने देश की गिरती साख को सम्हाल सके....जो ढंग से बात कर सके....जो भी आता है शिफारिशी जोकर होता है..... अब समय आ गया है कि जनता जागे और अपनी ताकत को पहचाने...उसका उपयोग करें, अगर इस तरह के हस्ताक्षर अभियान की शुरुआत हो जाए तो फिर देश को सुधरने से कोई नहीं रोक सकता है....संसद में बैठे हुए जो लोग हैं उन्हें हमने चुना है....उन्हें वही करना होगा जो, हम चाहेंगे.....और जनता हमेशा सही ही चाहेगी....लोग कहेंगे 'अदा' सपने देखती है....ये नहीं हो सकता....तो उनसे मैं कहूँगी कि जब उस दिशा में कोई काम किया ही नहीं तो उसकी सफलता पर पहले से संदेह क्यूँ करना....?? अरे दिल्ली जाना है तो दिल्ली की गाड़ी में बैठो.....घर में बैठ कर भगवान् से मानना कि हमें दिल्ली पहुंचा दो...बेवकूफी है...या फिर बिना गाड़ी में बैठने का प्रयास किये हुए मान लेना कि हम तो दिल्ली जा ही नहीं सकते गलत होगा..... संयुक्त हस्ताक्षर करके कोशिश तो कीजिये ....आपके आदेश का पालन होगा अवश्य ये मेरा विश्वास है.....



Dr. shyam gupta said...
---फ़िर एक नया तरीका , भ्रष्टाचार के तालाब में और नई मछलियां डालने का --सिर्फ़ हर नागरिक अपना-अपना कार्य जो उसे मिला है या दिया गया है- सत्य, न्याय व उचित ढंग से, बिना कैश या काइन्ड लाभ सोचे , करे तो सब कुछ स्वयं ठीक होजायेगा; और तभी ठीक होगा और कोई राह नहीं है। ---एक कार्य में जितने अधिक लोग होंगे उतना ही अधिक भ्रष्ट-आचरण । कविता पढिये--- सुधार की इबारत ..... आजकल बाढ़ आई हुई है, सेवा ,देश सेवा ,समाजसेवा करने वालों व् - करनेवाली संस्थाओं की । सभी अपने- अपने ढंग से , कर रहे हैं ,सेवा , लिख रहे हैं ,सुधार की इबारत । पर सुधार है कहाँ ? कहीं नहीं ,क्यों ? सुधार की इबारत ,लिखना नहीं है , स्वयम को ही ,सुधार की , नींव बनाना होता है , सुधार की इमारत बनाना होता है। सुधार स्वयम के सुधार से होता है, क्या कोई कर पा रहा है ?



http://dr-mahesh-parimal.blogspot.com/ said...
मैं ही क्यों, देश का कोई भी सभ्य नागरिक आज तक यह नहीं समझ पाया कि आम आदमी का प्रतिनिधि वीआईपी क्यों होता है? इसके अलावा संसद में इतना हो-हल्ला होता है, सांसद संसद का बहिष्कार करते हैं, कई बार मार्शल को बुलाना पड़ता है। इतना कुछ होने के बाद जब सांसदों के वेतन या भत्ते बढ़ाने वाला विधेयक कब बिना शोरगुल के कैसे पास हो जाता है? आखिर हमारे प्रतिनिधि किस काम के एवज में इतनी सुविधाएँ लेते हैं? कितने ईमानदार नेताओं से आपका पाला पड़ा, कोई बता सकता है? लोकतंत्र के नाम पर देश की जड़ों को खोखला कर रहे हें, ये नेता, लेकिन हम कब समझ पाएँगे, यह नहीं जानते। देश में भ्रष्टाचार का कोई भी मामला हो, तो इन नेताओं की मिलीभगत सामने आती ही है। आखिर पद मिलने के बाद ये इतने स्वार्थी कैसे हो जाते हैं? मैं तो उस दिन का इंतजार कर रहा हूँ, जब कोई शिक्षक अपने शिष्य के नेता बनने के बाद खुश होए और उसके बाद उसके भ्रष्ट होने पर सरे आम उसकी पिटाई करे। मेरी एक ही चाहत है ऐसा दृश्य देखने की। कब समझेंगे, ये नेता आम आदमी का दर्द ? डॉ महेश परिमल



डा० अमर कुमार said...
निताँत अव्यवहारिक परिकल्पना, अपने अपने क्षेत्र के साँसदों से ज़वाबदेही तक ठीक है, जब हमने प्रतिनिधि चुना है, तो अलग से अपनी भागीदारी की माँग.. कानून व्यवस्था के लिये चुनौती होगी !



anoop joshi said...
सर जिस देश मे जनता के सवाल् पुछने के भी रुपया यहा के संसद सदस्य लेते है उन्हे कमाइ का दो आर्क्ष्सित् महिने मिल जयेङ्गे।



bhojpuriyababukahin said...
जनभ्रम कब दूर होगा? जन,जनसेवक और जनतंत्र... कहते हैं कि एक दूसरे के पूरक है. जन जल रहा है, जनसेवक मेवा खा रहे हैं और जनतंत्र में से जन गायब हो चुका है. तंत्र जन को लूट रहा है और जन भ्रम में जीए जा रहा है. उसको लग रहा है कि विकास हो रहा है, पेड़-पौधों को काटकर, झुग्गियों को जलाकर/उजारकर,जंगलपुत्रों पर आग बरसाकर, संसद में प्रश्न के बदले धन लेकर, आईपीएल में सट्टा लगाकर, मेडिकल कॉसिल में घपला कर के, शहीदों के विधवाओं को विलखता छोड़कर, संयुक्त और अब व्यक्तिगत परिवार को तोड़कर. ऐसे में जिन सांसदों से हम सवाल पुछेंगे क्या उनको मालुम नहीं होता कि उनके क्षेत्र की समस्या क्या है? मालुम होते हुए अगर वे वातानुकूलित हवा को छोड़कर चिलचिलाती धूप में पत्थर तोड़ती औरत की मुसिबतों को देखने के लिये नहीं आ सकते, तो इन सांसदों और विधायको से प्रश्न पूछ कर समय जाया करने से कोई फायदा हमे नजर नहीं आता. इन महानुभावों को संसद/विधानसभाओं में घेरने के बजाय उनके क्षेत्र में ही उनके कर्तव्यों के निर्वहन के लिये उन पर हर संभव दबाव बनाया जाए तो ज्यादा अच्छा होगा. आशुतोष कुमार सिंह दिल्ली zashusingh@gmail.com



टी.सी. चन्दर T.C. Chander said...
बेईमान-ईमानदार, भ्रष्ट-अभ्रष्ट, मेहनती-हरामखोर...सब अपना काम सदियों से करते आ रहे हैं। पर यह आशा सदा बनी रहती है कि एक दिन सब ठीक और सुन्दर हो जाएगा। आप लगे रहें, मैं भी पिछले लगभग ४ दशकों से लगा हुआ हूं और संतोष की बात यह है कि हमारा साथ देने वाले बहुत हैं। -कार्टूनिस्ट चन्दर/ www.cartoonpanna.tk



LIMTY KHARE लिमटी खरे said...
हम इस पवित्र पावन काम में पूरी तरह आपके साथ हैं हमारे योग्‍य जो भी हो निसंकोच हमें बताएं