Friday, July 23, 2010

क्या हमारे देश के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति पद पर बैठे व्यक्ति उस पद कि गरिमा के अनुकूल हैं.....?


एक वीर शहीद जिनका आज जन्मदिन भी है ने देश के लिए अपने जान कि भी परवाह नहीं कि ,आज लोग सत्य,न्याय,देशभक्ति व ईमानदारी के लिए पदों का मोह त्यागने तक को तैयार नहीं ,क्या होगा इस देश और समाज का ?

कहते है कि राजा ऐसा होता है या होना चाहिए जिसे अपने जनता के दुखों  कि ह़र पल कि जानकारी हो और जिसे दूर करने के लिए उसे अपने स्वार्थ व सुविधा कि परवाह किये वगैर ह़र पल ईमानदारी से प्रयास करना चाहिए | इस देश का इतिहास कहता है कि यहाँ ऐसे भी जिन्दा जमीर वाले राजा हुए जिन्होंने अपने जनता के दुखों को सही मायने में जानने के लिए वेश बदलकर जनता के बीच कई दिनों तक रहकर उनके दुखों और पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के लापरवाही व अन्याय का पता लगाया और उसके ऊपर ईमानदारी से कार्यवाही करते हुए दोषियों को न्यायसंगत सजा दी और वर्षों तक एक न्यायसंगत व तर्कसंगत शासन को चलाया जिससे हमारा देश कभी सोने कि चिड़िया कहा जाता था और एक उच्च सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था के लिए पूरे विश्व में जाना जाता था |

अगर हम इन स्वर्ण युगों का अध्ययन करें तो पायेंगे कि , उस समय  के राजा बेहद चरित्रवान,निःस्वार्थी,न्यायप्रिय व परोपकारी हुआ करते थे और इसी वजह से जनता,देश व समाज इतना खुशहाल था | उस वक्त के राजाओं के जमीर व अंतरात्मा जिन्दा हुआ करता था जो इंसानी उसूलों को अपने राजपाट,फायदे और नुकसान से ज्यादा तरजीह देता था | आज भी अगर देखा जाय तो किसी व्यक्ति कि गारंटी क्या है ? जवाब होगा उस व्यक्ति का जिन्दा जमीर और सच्चा इंसान होना ही उसकी गारंटी है |

कोई भी पद एक शक्ति मात्र है जैसे इंसान का दिमाग या उसकी बुद्धि एक शक्ति है और उसका सदुपयोग व दुरूपयोग दोनों उस व्यक्ति पर निर्भर करता है | उच्च पदों पर बैठे व्यक्तियों के व्यवहार व आचरण का प्रभाव जनसाधारण पर अवश्य परता है | जब जन साधारण यह देखता है कि हमारे देश के उच्च पदों पर बैठा व्यक्ति ही तिकरम व भ्रष्टाचार के सहारे अपने स्वार्थसिद्धि को प्राथमिकता दे रहा है और जनता के कल्याण को प्राथमिकता देने के वजाय अपने भ्रष्ट सहयोगियों के कल्याण को प्राथमिकता दे रहा है तो ऐसी अवस्था में जनसाधारण का व्यवहार भी वैसा ही होने लगता है और आज हमारे देश कि अवस्था ठीक इसी प्रकार कि है |

आज जरूरत है कि हमारे देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री अपने पदों के शक्ति व मर्यादाओं के अनुकूल आचरण करते हुए भ्रष्ट मंत्रियों पर सख्त से सख्त कार्यवाही करें ,सत्य,न्याय कि रक्षा नहीं करने वाले अधिकारियों को ह़र-हाल में सजा देने का प्रबंध करें ,देश में किसी भी इमानदार ,देशभक्त व सच्चे इंसान को कोई तकलीफ ना हो इसका ह़र हाल में प्रबंध करे | इसके लिए जरूरत हो तो इन दोनों पदों पर बैठे व्यक्तियों को देश के ह़र गांवों में महीने के बीस दिन तब तक बिताने चाहिए जबतक आम लोगों कि समस्याओं का ईमानदारी से पता ना लगाकर उनका समाधान ना कर लिया जाय | 

सही मायने में इन पदों कि महत्ता तब बढ़ेगी जब लोग इन पदों पर बैठे व्यक्ति के व्यवहार और आचरण को देखकर श्रधा से सम्मान के लिए सर झुकायेंगे ना कि इनके डर से इनको कुछ भी बोलने से परहेज करेंगे और मन ही मन इनको जी भरकर कोसेंगे | आज देखा जाय तो यही हो रहा है क्योंकि संसद में कई सांसदों के गम्भीर आरोपों और सारे सबूतों के रहते हुए भी हमारे देश के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति सिर्फ और सिर्फ अपने पद कि लालच कि वजह से शरद पावर व अन्य भ्रष्ट मंत्रियों के खिलाप कोई भी कार्यवाही नहीं कर पा रहें हैं जो ना सिर्फ देश व समाज बल्कि पूरे इंसानियत के लिए खतरे कि घंटी है | सर्वोच्च पदों पर बैठे व्यक्तियों के ऐसे व्यवहार से इन पदों कि गरिमा व छवि भी आम लोगों में बेहद खराब हो रही है तथा देश कि पूरी कि पूरी पुलिस,प्रशासनिक व न्यायिक व्यवस्था सड़कर दुर्गन्ध दे रही है |

सभी ब्लोगरों से आग्रह है कि आप सब भी इस मुद्दे पर पूरी ईमानदारी से और निड़र होकर अपनी राय रखें जिससे एक बदलाव कि शुरुआत कि पहल हो |   

10 comments:

  1. जब तक हमारे लोकतन्‍त्र में गिनती का महत्‍व रहेगा तब तक हमारा प्रधान मंत्री और राष्‍ट्रपति तक कोई कदम नहीं उठा पाएगा। इस चुनाव प्रणाली में ही आमूल-चूल परिवर्तन होना चाहिए। प्रधानमंत्री या राष्‍ट्रपति का चुनाव सीधे ही होना चाहिए जैसे अमेरिका में होता है। इसी प्रकार अमेरिका जैसे ही उन्‍हें नौकरशाहों को भी चुनने का अधिकार होना चाहिए। आज यदि ईमानदार और कर्तव्‍यनिष्‍ठ राजनेता जीत भी जाता है तो उसी भ्रष्‍ट नौकरशाही से उसे काम लेना होता है। एक दिन ऐसा आता है कि या तो वह ईमानदार व्‍यक्ति राजनीति छोड देता है या फिर वह भी भ्रष्‍ट हो जाता है। शरद पँवार को मनमोहन सिंह जी नहीं निकाल सकते, बस अब तो जनता को ही उनके बारे में विरोध करना चाहिए। आप अच्‍छा कर रहे हैं कि शरद पँवार का नाम लेकर लिख रहे हैं। बात को सार्वजनिक कर देने से कुछ नहीं होता, आज सर्वाधिक भ्रष्‍ट राजनेता शरद पँवार हैं, इसलिए इस बात को जनता को समझना चाहिए।

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  2. जिम्मेदार कौन है ? हम वोटर !!

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  3. आज जरूरत है कि हमारे देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री अपने पदों के शक्ति व मर्यादाओं के अनुकूल आचरण करते हुए भ्रष्ट मंत्रियों पर सख्त से सख्त कार्यवाही करें ,सत्य,न्याय कि रक्षा नहीं करने वाले अधिकारियों को ह़र-हाल में सजा देने का प्रबंध करें ,देश में किसी भी इमानदार ,देशभक्त व सच्चे इंसान को कोई तकलीफ ना हो इसका ह़र हाल में प्रबंध करे | इसके लिए जरूरत हो तो इन दोनों पदों पर बैठे व्यक्तियों को देश के ह़र गांवों में महीने के बीस दिन तब तक बिताने चाहिए जबतक आम लोगों कि समस्याओं का ईमानदारी से पता ना लगाकर उनका समाधान ना कर लिया जाय |

    झा जी आपसे पूरी तरह सहमत हूँ लेकिन प्रश्न ये है की ये सब करेगा कौन ? इस समय तो स्वामी रामदेव जी और उनके भारत स्वाभिमान संगठन से ही उम्मीद की जा सकती है

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  4. शीर्ष पद पर बैठे दोनों व्यक्ति -

    1) प्रधानमंत्री की एकमात्र योग्यता यह है कि वे किसी गुट में शामिल ज़मीनी राजनेता नहीं है, न ही उनमें गुट बनाने की क्षमता है। वे लोकसभा का चुनाव तक नहीं लड़ते, पिछले दरवाजे से बने हुए प्रधानमंत्री हैं…

    2) राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल की एकमात्र योग्यता भी मिलती-जुलती ही है, एक बात अतिरिक्त है, वह है गाँधी परिवार की निष्ठा से की गई सेवा… वरना प्रतिभा पाटिल से सौ गुना प्रतिभा वाले कई व्यक्ति राष्ट्रपति बन सकते थे।

    कुल मिलाकर दोनों ही "कठपुतली" हैं जिन्हें नचाने वाली डोर किसी और के हाथ में है।

    आपने इस लिस्ट में उपराष्ट्रपति का नाम क्यों नहीं जोड़ा? उनकी भी योग्यता(?) वही है, जो मैंने ऊपर गिनाईं…

    इसका इलाज तभी हो सकता है जब प्रधानमंत्री का प्रत्यक्ष चुनाव हों, यानी जनता खुद चुने महापौर की तरह। जबकि अभी 540 "सिर" मिलकर (बल्कि 272 "सिर" मिलकर) तय करते हैं कि प्रधानमंत्री कौन होगा।

    दुर्भाग्य यह है कि, लोकतन्त्र में "सिर" गिने जाते हैं, ये नहीं देखा जाता कि उन "सिरों" के अन्दर क्या भरा है… :) :)

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  5. में सुरेश चिपलूनकर की बात से पूरी तरह सहमत हूँ कहने को तो जनता मालिक है पर मालिक की दुर्गति आप भारत में हर जगह देख सकते हैं आपकी अच्छी से अच्छी भावना से उठाई गयी आवाज भी इसलिए दबा दी जाती है कि वह निहित स्वार्थों से टकराती है

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  6. क्या सीधे चुनाव से तस्वीर बदलेगी ?
    मतदाता तो वही है भीड़ तंत्र का हिस्सा .

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  7. सुना है मन मोहन जी बहुत ईमान दार है??? जब कि उन के चारो ओर गुंडे चोर उच्चको की फ़ोज है.... क्या सिर्फ़ गद्दी का लालच नही, ईमान दार आदमी तो अपनी इज्जत के लिये राज सिंहासन को भी ठोकर मार देता है.... बाकी मै सुरेश जी से सहमत हुं

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  8. pahli baat to ye hai ki jis aayu ke hamaare praadhaanmatry or rashtrpati hain ,is age group me pahuchne ke baad jo thodi bahut yogytaa jawaani ke time me hoti hai ,wo bhi khatm ho jaati hai ,yadi yogytaa bachti hai to wo hoti hai ,vard haston ki or munh uthaakar dekhnaa,unki prtyek baat kaa samrthan karnaa,goonge or bahre bane rahnaa,shakti se kursi par kaabij rahnaa ,is umar me itne marj ghere rakhte hain ki ye log binaa injection ke chal fir bhi nahi sakte,swaym ko durust rakhne ke liye or jee hajoori karne bhar ke liye inko hakeemon ki ghodaa goli khaani padti hai,jab ye apni sehat hi sahin nahi rakh sakte to ye desh ke baare me yaa jantaa ke baare me kyaa sochenge ,rahi chunaaw naa ladne kaa kaaran ,to bhaai jab shareer me jaan hi nahin hai to netaa ji saansad ke kshetr me bhalaa kaise ghoom paayenge ,isliye inkaa chunaaw to maataa ji ki kshtr chhaayaa hi hai ye to bhaai signing authority hain ,or desh ko kyaa chaahiye adhyaadesh to primminister yaa president hi laagoo karte hain ,chaahe banaaye koi bhi,

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  9. अगर आप गौर से किसी भी चुनाव प्रक्रिया को देखें तो पता चलेगा कि कितने लोग ऐसे हैं जो किसी गुट, वाद, या किसी जाति धर्म गत मुद्दे से प्रभावित न हो कर सच्चाई अच्छाई और ईमानदारी के आधार पर चुनाव करते हैं ... या ये कहिये किसी भेड़चाल से अलग अपने विवेक के आधार पर चुनाव करते हैं ... इस विवेकहीन चुनाव के परिणाम भी दुखद होते हैं जिनके लिए हम नेताओं को कोसते हैं, इसी कारण सभी पार्टियाँ गरीब और पिछड़े तबके को अपने वोट बैंक में जोड़ने का प्रयास करती हैं क्योकि उनका चुनाव विवेक न होकर जाति धर्म आदि छोटे मुद्दे होते हैं ...
    १-सरकारी नौकरियों में भर्ती के जैसे ही चुनाव से पहले नेताओं की आपराधिक गतिविधियों की भी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए जिसके लिए किसी एन जी ओ की सहायता ली जा सकती है
    २-चुनाव से पहले प्रलोभन और पूर्व घोषणा करने पर प्रतिबन्ध होना चाहिए.
    ३-दुबारा चुनाव लड़ने वाले नेताओं को पिछले कार्य कलाप का चिट्ठा सार्वजनिक करना अनिवार्य होना चाहिए
    ४-चुनाव में आनलाइन वोटिंग की व्यवस्था होनी चाहिए जिससे व्यस्त और प्रबुद्ध लोग अधिक से अधिक चुनाव प्रक्रिया में भाग ले सकें
    ५-चुनाव से पूर्व नेताओं की व्यक्तिगत संपत्ति का व्योरा देना चाहिए जिसमे पार्टी चंदे से खरीदी गयी संपत्ति शामिल नहीं होनी चाहिए
    ६-ज़्यादातर पढ़े लिखे और प्रबुद्ध लोग चुनाव प्रक्रिया में भाग नहीं लेते हैं या नहीं ले पाते जिनका चुनाव में भाग लेना टैक्स जमा करने जैसा अनिवार्य होना चाहिए
    ७-अखिलभारतीय स्तर पर हर नेता की लोकप्रियता और कार्यों के आधार पर रैंकिंग तय होनी चाहिए

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  10. पद्म जी ने बढ़िया लिखा है . पूर्ण सुविधा जैसे ऑनलाइन वोटिंग मिलने के बाद भी अगर लोग वोट न करें तो जुर्माना किया जाना चाहिए और वोट करने के लिए टैक्स में छूट . लेकिन इस औज़ार का उपयोग करने से पहले या सुनिश्चित करना आवश्यक हो की यह सुविधा सीमित लोगों को दी जाए, इसका दुरुपयोग रोकने के लिए .

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