महिला सशक्तिकरण कि बात करने वाले ये कौन लोग है ? कहिं ये वो ही लोग तो नहीं जो क्या महिला ,क्या बच्चा ,क्या नौजवान और क्या बूढा हर किसी को इस देश में कमजोर करने ,मजबूर बनाने और सत्ता में बैठे मजबूरों के अस्मिता तक का सौदा करने वालों के पास जाने को मजबूर करने का काम करते हैं ? मुझे शर्म आती है यह पूछते हुए कि कहाँ चले जाते हैं ये लोग जब रुचिका के मरने के १९ साल गुजर जाने के बाद भी उसके आत्महत्या के लिए जिम्मेवार व्यक्ति को सजा नहीं मिल पाती है? कहाँ चले जाते हैं ये लोग जब किसी महिला के साथ बलात्कार करने वाला कोई ऊँची पहुँच वाला होता है ?कहाँ चले जाते हैं ये लोग जब एक बच्ची अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए किसी कि मजबूरी का सौदा करने वाले के हाथों अपना सब कुछ बेचने को मजबूर हो जाती है ? आज असल मुद्दा यह नहीं कि संसद में १०० में से ३० महिलाएं हों,असल मुद्दा तो यह है कि जो महिला उच्च संबैधानिक पदों पर बैठी है ,क्या वह उन पुरुषों के दबाब के बिना काम कर रही है जो पुरुष हमेशा महिलाओं के सशक्तिकरण के नाम पर उनका इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करता रहा है ? हालाँकि कुछ अपवाद हैं जैसे किरण बेदी ,मेघा पाटकर इत्यादि जिन्होंने न सिर्फ पुरुषों बल्कि जीवन में अपने उसूलों के खातिर बड़ी से बड़ी चुनौतियों के सामने कभी भी घुटने नहीं टेका / ऐसा जज्बा तो मर्दों में भी कम ही देखने को मिलता है / अब सवाल उठता है कि महिलाओं का असल में सशक्तिकरण कैसे होगा ? महिलाओं को कमजोर करने वाले कारण कौन कौन से हैं ? जबाब है भ्रष्टचार एक प्रमुख कारण है महिलाओं के कमजोरी और बाजारीकरन का ,क्योंकि ज्यातर मामलों में भ्रष्ट लोग ,जिनके पास दो नंबर का पैसा होता है ,और जिनको यह गुमान होता है कि वे पैसे के दम पर हर गुनाह से बचकर निकल जायेंगे ,ऐसे लोग ही महिलाओं के साथ ज्यादा कुकर्म करते है क्योंकि हमारे देश कि व्यवस्था ऐसे लोगों को सजा देने में या तो बहुत देर करती है या दे ही नहीं पाती है / हमारे देश में महिला आयोग से लेकर महिला कल्याण मंत्रालय तक ऐसे लोगों के सामने लाचार दिखती है /आज जरूरत है कागजों में नहीं बल्कि जमीनी स्तर पड़ हर राज्य का महिला आयोग और महिला कल्याण मंत्रालय महिलाओं के हर शिकायत पर तुरंत और सख्त से सख्त सजा दोषियों को दिलाने के लिए सही और ठोस उपाय करे और बिना किसी भेद भाव के हर पीड़ित महिला को उसके द्वार पर जाकर सहायता और सहानभूति प्रदान करे /सिर्फ ऐ सी दफ्तर में बैठने,फाइल बनाने और बनाकर रखने से महिलाओं का सशक्तिकरण नहीं होगा / महिलाओं के हर उस शिकायत जिससे उसकी अस्मिता जुडी हो पर, पूरे देश में और देश के हर अदालत में एक साल के के भीतर सुनवाई पूरी कर कार्यवाही करना जरूरी बना दिया जाय/ बृद्ध महिला,विधवा महिला और असहाय महिलाओं को पेंशन के लिए बैंक या किसी दफ्तर नहीं जाना परे बल्कि उनके घर ये सारी सरकारी सुविधाएँ पहुँचाना किसी भी जिला प्रसाशन के लिए जरूरी बना दिया जाय/महिलाओं के लिए कुछ सरकारी विभागों में 60 प्रतिसत तक आरक्षण होना चाहिए मसलन शिक्षा,बैंक,समाज कल्याण और महिलाओं के कल्याण से जुड़ें सभी विभाग तथा महिला कल्याण मंत्रालय इत्यादि /गाँव हो या शहर हर थाने में दो महिला अधिकारी जरूर हो /महिलाओं कि शिक्षा सरकारी या गैर सरकारी स्कूलों में पूरी तरह मुफ्त हो /जिन माता पिता को सिर्फ दो बेटीयां हो उसे राष्ट्रीय गौरव योजना की शुरूआत कर हर महीने १०००रूपया कि प्रोत्साहन राशी प्रदान कि जाय /ये कुछ ऐसे जमीनी उपाय है जिससे सही मायने में महिलाओं का विकास होगा / अब रही बात महिलाओं को बाजारीकरण में प्रयोग करने वाले लोगों के खिलाफ कार्यवाही कि तो इस दिशा में सख्त नियम कायदे बनाने कि जरूरत है जिसे महिला संगठनों और स्वयंसेवी संस्थाओं से सुझाव मंगवाकर तैयार किया जा सकता है ,जिससे सीमेंट के प्रचार में सीमेंट कि गुणवत्ता कि जगह महिलाओं के मांसल सौन्दर्य का घिनौना प्रदर्शन करने और अपने फायदे के लिए महिलाओं कि असुरक्षा को बढाने वालों पर नकेल कसा जा सके /मुझे तो भारतीय मिडिया के लाचारी पड़ आश्चर्य होता कि ऐसे विज्ञापन के खिलाफ आवाज उठाने के वजाय उसे पैसे के लिए प्रशारित करने का काम कर महिलाओं का अपमान करती है / आज पैसे के लिए हर किसी कि अपनी अपनी दलील हो जाती है ,लेकिन हम आपसे अपेक्षा करते है कि आपकी दलील इस ब्लॉग पड़ महिलाओं के सच्चे हित में होगा /
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