भारत में लोकतंत्र को किस पार्टी ने खुलेआम मंत्रितंत्र में बदल कर रख दिया है यह तो मैं ठीक-ठीक नहीं बता सकता लेकिन हम क्या आज पूरा देश यह महसूस कर रहा है क़ी भारत मैं लोकतंत्र नहीं बल्कि मंत्रितंत्र है /कहते है दिल्ली भारत का दिल है और जिस लोकतंत्र का दिल सड़ गया हो वहाँ लोकतंत्र क़ी उम्मीद करना सबसे बड़ी मुर्खता कही जाएगी /अगर हमारी बातों पर किसी को यकीन ना आये तो हमारी बातों पर गौर करने के साथ-साथ जरा संजीदगी से सोचिये -दिल्ली में कोई भी काम लोकतंत्र क़ी मर्यादा के दायरे में नहीं हो रहा है /उदाहरण कई है जैसे -शिक्षा मंत्री का काम होता है ,शिक्षा व्यवस्था को सही कर उसके व्यवसायीकरन को रोकना लेकिन पिछले तीन वर्षों में दिल्ली में देश और प्रदेश दोनों के शिक्षा मंत्री के होते हुए भी दिल्ली में जितना शिक्षा का व्यवसायीकरन कर उसके स्तर को गिराया गया है उतना तो कभी किसी इन्सान ने सपने में भी नहीं सोचा था /इसके कारण पर जब आप गौर करेंगे ,जिसकी चर्चा हर घर में होती है और लोग कहते हैं क़ी जब शिक्षामंत्री निजी स्कूलों से मिलकर अपना और अपने पार्टी के फंड को अरबों तक पहुँचाने का काम करेंगे तो शिक्षा और शिक्षा का असल मकसद ''बच्चों को संस्कार और चरित्र निर्माण क़ी ओर आगे बढाकर देश और समाज को मजबूत आधार प्रदान करना ''दोनों का सत्यानाश होना निश्चित है /शिक्षा व्यवस्था को सही मायने में हमारे देश क़ी सरकार सुधारना ही नहीं चाहती है क्योंकि लोग शिक्षित और विद्वान होंगे तो भ्रष्टाचार और सरकारी पैसे को भ्रष्ट मंत्रियों द्वारा अपने जागीर क़ी तरह इस्तेमाल करने के खिलाफ आवाज उठायेंगे जिससे देश में सुशासन आएगा जो भ्रष्ट और निकम्मे मंत्रियों का सेहत ख़राब कर सकता है और इस देश में,देश और समाज क़ी सेहत बेशक ख़राब हो जाय लेकिन भ्रष्ट मंत्रियों के सेहत क़ी पूरी गारंटी के लिए इस देश का खजाना और आम लोगों क़ी जेब दोनों पूरी तरह खुली है /शर्म आती है ऐसे मंत्रियों पड़ और ऐसी व्यवस्था पड़ /ऐसे मंत्रियों को रखने से अच्छा तो किसी विभाग का कोई मंत्री ना हो तो अच्छा होगा / इसी भारत के दिल दिल्ली में किसी भी सरकारी विभाग का कामकाज दिल्ली के लोगों के सेहत को ठीक करने वाला नहीं बल्कि लोगों को मानसिक यातना देने वाला है /दिल्ली के बिभिन्न ट्रांसपोर्ट ऑथरिटी में स्टाफ क़ी कमी के कारण लोगों को लाएसेंस बनाने और उसे पाने में हजारों रूपये शुल्क देने के बाबजूद महीनों चक्कर काटना पड़ता है /इसी दिल्ली में अगर समाज सेवकों के समूह द्वारा हर सरकारी विभाग के कर्मचारियों के संख्या क़ी जाँच क़ी जाय तो हर विभाग में फर्जी कर्मचारियों क़ी संख्या पायी जाएगी जिन फर्जी नामों पर हर महीने में लाखों का भुगतान होता है जो भ्रष्ट मंत्रियों और अधिकारियों में बंदरबाँट किया जाता है और आम जनता जो सरकारी खजाने को एक माचिस के खरीदने से लेकर विभिन्न प्रकार के टेक्स देकर हर रोज भरती है,उसे सेवा और सुविधा के नाम पड़ हर जगह ठगा और परेशान किया जाता है /वहीँ दूसरी ओर उसी पैसे से भ्रष्टमंत्री और अधिकारी जनता का शोषण और अपना और अपने रिश्तेदारों का खूब सेवा करते हैं /यही है हमारा लोकतंत्र ,अब इसे लोकतंत्र कहें या मंत्रितंत्र ? हमारे नजर में ऐसी स्थिति किसी भी लोकतंत्र के लिए बेहद शर्मनाक है और ऐसी स्थिति का एक ही इलाज है क़ी जनता द्वारा हर सरकारी विभाग का हर दो महीने में सामाजिक जाँच जरूरी कर दिया जाय और जनता को किसी भी भ्रष्टमंत्री के ऊपर कभी भी भ्रष्टाचार का शक होने पर देश के इमानदार समाजसेवकों द्वारा जाँच कराने का अधिकार दिया जाय / ये कैसा लोकतंत्र है जहाँ आमआदमी आज अंग्रेजों क़ी जगह भ्रष्टमंत्रियों और अधिकारियों क़ी गुलामी का दंश झेल-झेल कर भूखे मरने को मजबूर है / आम जनता जो अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति तक को चुनती है,उसी जनता के विचारों और सुझावों को मंत्रिमंडल के किसी भी निर्णय में शामिल करना और आमलोगों पड़ उस निर्णय से पड़ने वाले दुष्प्रभाव से समाज में उत्पन्न होने वाली असंतुलन से देश को होने वाला भयंकर नुकसान के बारे में कोई भी शोध नहीं किया जाता है ,और ऐसा इसलिए होता है क़ी मंत्रिमंडल में बैठे लोगों के स्वार्थ सिद्धि का शोध और लोगों को कैसे अपने दो वक्त के रोटी के बारे में दिन-रात सोचते रहने और देश व समाज के बारे में नहीं सोचने का शोध किसी भी निर्णय से पहले जरूर कर लिया जाता है / हमारे ख्याल से तो आज के हालात से अच्छा तो इस देश में कोई भी मंत्री और मंत्रालय नहीं होता और जनता खुद खुले आसमान के नीचे एक इमानदार प्रतिनिधि को चुनकर उसे कोई कार्य करने को देती और उससे हर महीने खुले आसमान के नीचे भरी सभा में सवाल-जबाब करती / सही मायने में लोकतंत्र तब होता /इसलिए अगर इस मंत्रीतंत्र को बदलना है तो सारे मंत्री को हटाकर सभी मंत्रालय को बंद कर दिया जाना चाहिए ,क्योंकि इन पड़ होने वाला खर्चा जनता के पैसों क़ी खुलेआम बर्बादी है /
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