Thursday, April 15, 2010

सरकार मिले तो वार्ता अरुंधती रॉय मिले तो नक्सलियों को सहायता -----?

 हिंसा को को किसी भी सूरत में सही नहीं ठहराया जा सकता,लेकिन छतीसगढ़ में हुई हिंसा के मूल कारणों पर तर्कसंगत बिवेचना कि जरूरत है न कि अरुंधती रॉय का नक्सलियों से मिलने और न मिलने पर बहस कर इस गंभीर मुद्दे के बहस को गलत दिशा में मोड़ देने कि / नक्सलियों से किसी भी आम नागरिक को हिंसा का रास्ता त्यागने और अपनी बात अहिंसक तरीके से रखने को प्रेरित करने का हक़ है तो अरुंधती रॉय ने कौन सा नक्सलियों को हथियारों का जखीरा पहुंचा दिया जो इस पर छतीसगढ़  पुलिस अरुंधती रॉय के खिलाप कार्यवाही कि बात सोच रही है ? शर्म आती है ऐसे विचारों को सुनकर छतीसगढ़  पुलिस को अपना निकम्मापन नहीं दिखता  है जिससे छतीसगढ़ में नक्सलियों कि ताकत इतनी बढ़ गयी,राष्ट्रिय ख़ुफ़िया एजेंसियों को अपना निकम्मापन नहीं दीखता है जिससे नक्सलियों के पास अत्याधुनिक हथियार पहुँच गए जिससे वे इतने बड़े हत्याकांड को अंजाम दे सके / निश्चय ही ये कुछ ऐसे कारण है जिसकी जाँच कि जाने कि जरूरत है साथ ही सामाजिक कार्यकर्ताओं को नक्सलियों से मिलने से रोकने के बजाय भ्रष्ट राजनीतिज्ञों पर खुफिया नजर रखने कि जरूरत है क्योंकि ये अपने फायदे के लिए नक्सली क्या आतंकवादी तक का सहारा ले सकते हैं और इनको देश और समाज कि परवाह कहाँ / सही मायने में नक्सली हिंसा के लिए व्यवस्था में उच्च पदों पर बैठे भ्रष्ट और गद्दार लोग जिम्मेवार हैं ना कि अरुंधती रॉय जैसे बुद्धिजीवी / इसलिए जरूरी है कि ऐसे गद्दारों कि पहचान कि जाय और इनको हर हल में व्यवस्था से बाहर रक्खा जाय,तब जाकर नक्सली हिंसा पर काबू लग पायेगा / साथ-साथ छतीसगढ़ ही नहीं पूरे देश में सामाजिक संतुलन और गरीबों के कल्याण के फंड  को हर हल में गरीबों के हाथों तक पहुँचाने के ठोस उपाय और गरीबों के फंड को खाने वाले भ्रष्ट मंत्रियों के चमचों और अधिकारियों पर सख्त से सख्त कार्यवाही करने कि / सरकार इस और ध्यान दे तो अच्छा रहेगा रही नक्सलियों से वार्ता कि बात तो यह काम तो देश के इमानदार समाज सेवकों को ही करने देना चाहिए क्योंकि वे सरकार से अच्छी वार्ता कर सकते हैं ,बस जरूरत है सरकार द्वारा उस वार्ता के परिणामों को ईमानदारी से लागू करने कि  ? अगर ऐसा होता है तो इस देश में सही मायने में लोकतंत्र होगा /

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