Friday, April 16, 2010

भ्रष्टाचार अब लोगों का पैसा नहीं लूट रहा बल्कि क्या आम और क्या खास सबका खून चूस रहा है ------------ ?

                                                
जिस देश कि गावों में विधवा पेंसन के बदले लाचार और बेवस विधवाओं का भी देह शोषण किया जाता हो,गरीब और लाचार लोगों के कल्याण के विभिन्न योजनाओं का पैसा भ्रष्ट मंत्री,जनप्रतिनिधि और उसके असामाजिक चमचों द्वारा हजम कर लिया जाता हो,ऐसे में क्या जरूरत है इन लूटेरों कि जमात को सरकारी पद,मोटी तनख्वाह और बे हिसाब भत्ता देने कि ? आज क्या आम और क्या खास,ह़र किसी के जेहन में एक ही सवाल है कि -क्या आज इस देश में सरकार और सरकार द्वारा संचालित, कानून द्वारा रक्षित, और समाज द्वारा स्वीकृत व्यवस्था है  ? भ्रष्टाचार अब लोगों का पैसा नहीं लूट रहा बल्कि क्या आम और क्या खास सबका खून चूस रहा है -?
                    आज इस बात पर चर्चा करने कि अति आवश्यकता है कि क्या यही लोकतंत्र है ,जिसे हमने देश भक्तों कि बलिदानी के कीमत के बदले अंग्रेजों से से पाया था और अब अंग्रेजों से भी बदतर और भ्रष्ट लोग इस देश कि ज्यादातर उच्च पदों पड़ बैठकर इस देश कि जनता का खून चूस रहें हैं / कौन पूछेगा ,कौन मांगेगा हिसाब,कौन मांगेगा जवाब ? बस बहुत हो चुका अब तो आम जनता को भड़ी सदन में प्रधान मंत्री,कृषि मंत्री और अपने चुने हुए प्रतिनिधियों से सवाल कर जवाब मांगने का हक़ चाहिए ही चाहिए ? 
                   यह अधिकार तब मिलेगा जब पूरे देश के इमानदार और देश भक्त लोग इसके लिए एकजुट होंगे और देश में इसके लिए वैचारिक क्रांति फैलायेंगे / इस बिषय पर अपने अमूल्य विचार और सुझाव हमारे इस पोस्ट सभी ब्लोगरों से करबद्ध प्रार्थना है कि इस ब्लॉग को जरूर पढ़ें और अपना बहुमूल्य सुझाव देने का कष्ट करें----- देश के संसद और राज्य के विधानसभाओं के दोनों सदनों में आम जनता के द्वारा प्रश्न काल के लिए साल में दो महीने आरक्षित होना चाहिए --------------के टिप्पणी बॉक्स में अपनी टिप्पणियों  के रूप में दर्ज करें / आप इस पोस्ट पर अपनी टिप्पणी करने के साथ-साथ किसी के उम्दा टिप्पणियों पर टिप्पणी करके उसकी सराहना भी कर सकते हैं / अगर आपकी टिप्पणी उम्दा हुई और उसे सबसे ज्यादा लोगों ने सराहा तो आपको इनाम से सम्मानित भी किया जा सकता है / 

1 comment:

  1. अच्छा लिखा है, साधुवाद एवं शुभकामनाएँ!
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    जिन्दा लोगों की तलाश!

    आपको उक्त शीर्षक पढकर अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन सच में इस देश को कुछ जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की इस तलाश में हम सिर्फ सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को हो सकता है कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है।

    आपको उक्त टिप्पणी प्रासंगिक लगे या न लगे, लेकिन हमारा आग्रह है कि बूंद से सागर की राह में आपको सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी आपके अनुमोदन के बाद प्रदर्शित होगी तो निश्चय ही विचार की यात्रा में आप को सारथी बनना होगा। इच्छा आपकी, आग्रह हमारा है। हम ऐसे कुछ जिन्दा लोगों की तलाश में हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी जिनमें हो, क्योंकि भगत ने यही नासमझी की थी, जिसका दुःख आने वाली पढियों को सदैव सताता रहेगा। हमें सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह और चन्द्र शेखर आजाद जैसे आजादी के दीवानों की भांति आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने वाले जिन्दादिल लोगों की तलाश है। आपको सहयोग केवल इतना भी मिल सके कि यह टिप्पणी आपके ब्लॉग पर प्रदर्शित होती रहे तो कम नहीं होगा। आशा है कि आप उचित निर्णय लेंगे।


    समाज सेवा या जागरूकता या किसी भी क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों को जानना बेहद जरूरी है कि इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम होता जा है, बल्कि हो ही चुका है। सरकार द्वारा जनता से हजारों तरीकों से टेक्स (कर) वूसला जाता है, देश का विकास एवं समाज का उत्थान करने के साथ-साथ जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरों द्वारा इस देश को और देश के लोकतन्त्र को हर तरह से पंगु बना दिया गया है।

    भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, व्यवहार में लोक स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को भ्रष्टाचार के जरिये डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने अपना कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं। ऐसे में, मैं प्रत्येक बुद्धिजीवी, संवेदनशील, सृजनशील, खुद्दार, देशभक्त और देश तथा अपने एवं भावी पीढियों के वर्तमान व भविष्य के प्रति संजीदा लोगों से पूछना चाहता हँू कि केवल दिखावटी बातें करके और अच्छी-अच्छी बातें लिखकर क्या हम हमारे मकसद में कामयाब हो सकते हैं? हमें समझना होगा कि आज देश में तानाशाही, जासूसी, नक्सलवाद, लूट, आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका एक बडा कारण है, भारतीय प्रशासनिक सेवा के भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरों द्वारा सत्ता मनमाना दुरुपयोग करना और कानून के शिकंजे बच निकलना।

    शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)- के सत्रह राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से मैं दूसरा सवाल आपके समक्ष यह भी प्रस्तुत कर रहा हूँ कि-सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! क्या हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवक से लोक स्वामी बन बैठे अफसरों) को यों हीं सहते रहेंगे?

    जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहे उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्त करने के लिये निम्न पते पर लिखें या फोन पर बात करें :-

    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
    राष्ट्रीय अध्यक्ष
    भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
    7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
    फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666, E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

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